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करंट से मोरों की मौतों पर दाखिल याचिका दिल्ली हाईकोर्ट ने कर दी खारिज


दिल्ली हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय पक्षी मोर की बिजली करंट से हो रही मौतों को लेकर नियम बनाने की मांग वाली जनहित याचिका को खारिज कर दिया. अदालत ने कहा कि वह कानून बनाने का काम नहीं कर सकती और याचिकाकर्ता को पहले सही प्राधिकरणों से संपर्क करना चाहिए. चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की बेंच ने सेव इंडिया फाउंडेशन की याचिका को यह कहते हुए खारिज किया कि याचिकाकर्ता ने सिर्फ छह दिन पहले यानी 3 अप्रैल को ही संबंधित विभागों को एक प्रतिनिधित्व सौंपा है और उसके जवाब का इंतजार किए बिना ही अदालत पहुंच गए.

दिल्ली हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील को फटकार लगाते हुए कहा आप लोगों को लगता है कि हमारे पास कोई जादू की छड़ी है. पहले सही विभागों से संपर्क करें और उनके जवाब का इंतजार करें. पूरा सिस्टम मौजूद है, कोर्ट में तभी आइए जब वे विफल हों. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उसे याचिकाकर्ता के उद्देश्य से सहानुभूति हो सकती है, लेकिन वह कानून नहीं बना सकता. कोर्ट ने कहा अगर इस संबंध में कोई कानून नहीं है तो उचित फोरम से संपर्क करें. हम नियम नहीं बना सकते.

दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान बिजली वितरण कंपनियों (DISCOMs) के वकील ने बताया कि उन्हें इस मुद्दे पर कोई शिकायत या प्रतिनिधित्व नहीं मिला है. कोर्ट ने कहा कि याचिका बहुत जल्दबाजीं में दायर की गई है, क्योंकि संबंधित विभागों को जवाब देने का उचित समय नहीं दिया गया. इसी आधार पर कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी

कोर्ट ने याचिकाकर्ता को यह छूट दी कि वह दो हफ्तों के अंदर एक विस्तृत और वैधानिक प्रतिनिधित्व संबंधित विभागों को दे सकता है. कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि ऐसा कोई प्रतिनिधित्व मिलने पर प्राधिकरणों को उस पर विचार कर उचित कार्रवाई करनी होगी.

याचिकाकर्ता का कहना था कि दिल्ली में खुले बिजली के तारों और खंभों की वजह से मोरों की मौतें हो रही हैं और इस विषय में न तो कोई नियम है और न ही कोई मानक प्रक्रिया (SOP). याचिका में आरोप लगाया गया कि विभिन्न विभाग एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डाल रहे हैं और किसी के पास ठोस योजना नहीं है. याचिकाकर्ता ने अदालत से मोरों की सुरक्षा के लिए दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की थी.

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