प्रयागराजः कोमलता, आध्यात्मिकता, सहनशीलताके प्रतीकश्री गुरु तेग बहादुर जी-सरदार पतविंदर सिंह
April 18, 2025
प्रयागराज। भारतीय जनता पार्टी अल्पसंख्यक मोर्चा काशी क्षेत्र,क्षेत्रीय उपाध्यक्ष सरदार पतविंदर सिंह की अध्यक्षता में सामाजिक युवाओं की बैठक स्वर्गीय भूपेंद्र सिंह सभागार में संपन्न हुई।
जिसमें क्षेत्रीय उपाध्यक्ष सरदार पतविंदर सिंह ने कहा कि आध्यात्मिक सांस्कृतिक व सामाजिक ज्ञान की चेतना से जनमानस को ओतप्रोत कराने के लिए भ्रमण पर निकले सिखों के नौवें गुरु श्री गुरु तेगबहादुर जी प्रयाग में लंबे समय तक रुके थे विक्रमी संवत 1723 यानि 1666 को उनका संगम नगरी में आगमन हुआ गुरुद्वारा पक्की संगत में रुककर उन्होंने धर्म अध्यात्म का व्यापक प्रचार-प्रसार किया श्री गुरु तेगबहादुर जी के साथ मां नानकी,पत्नी माता गुजरी,भाई कृपाल चंद्र,सेवक भाई मतीदास, सतीदास,दयाला,गुरबख्श,बाबा गुरुदीत्ता थे कि श्री गुरु तेग बहादुर जी ने छह माह प्रयाग में रुककर धर्म चर्चा की वह स्थान आज अहियापुर मालवीय नगर में श्री गुरुद्वारा पक्की संगत के नाम से प्रसिद्ध है।
दलजीत कौर ने अपने संबोधन में कहा कि श्री गुरु तेगबहादुर जी प्रयाग,बनारस,पटना,असम आदि क्षेत्रों में गए जहाँ उन्होंने आध्यात्मिक,सामाजिक, आर्थिक,उन्नयन के लिए रचनात्मक कार्य किए।आध्यात्मिकता,धर्म का ज्ञान बाँटा। रूढ़ियों, अंधविश्वासों की आलोचना कर नये आदर्श स्थापित किए। उन्होंने परोपकार के लिए कुएँ खुदवाना,धर्मशालाएँ बनवाना आदि कार्य भी किए।
परमिंदर सिंह बंटी ने कहा कि सहनशीलता,कोमलता और सौम्यता की मिसाल के साथ साथ श्री गुरू तेग बहादुर जी ने हमेशा यही संदेश दिया कि किसी भी इंसान को न तो डराना चाहिए और न ही डरना चाहिए। इसी की मिसाल दी श्री गुरू तेग बहादुर जी ने बलिदान देकर मानवता की रक्षा की जिसके कारण सृष्टि की चादर -ढाल भी कहा जाता है उन्होंने दूसरों को बचाने के लिए अपनी कुर्बानी दी।
ज्ञानी जसपाल सिंह ने कहा कि श्री गुरु तेग बहादुर जी का मानना था कि पूरा गुरू चमत्कार या करमातें नहीं दिखाता,वो उस अकालपुरख की रजा में रहता है और अपने सेवकों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करता है,श्री गुरू तेग बहादुर जी ने धर्म की खातिर अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया,ऐसा कोई संत परमेश्वर ही कर सकता है जिसने अपने पर में निज को पा लिया हो, अर्थात् अपने हृदय में परमात्मा को पा लिया उसके भेद को तो कोई बिरला ही समझ सकता है आज जरूरत गुरू घर से जुड़ने की इसलिए तो गुरबाणी में कही गई बातों को अमली जामा पहनाने । संसार को ऐसे बलिदानियों से प्रेरणा मिलती है, जिन्होंने जान तो दे दी, परंतु सत्य का त्याग नहीं किया। नवम पातशाह श्री गुरु तेग बहादुर जी भी ऐसे ही बलिदानी थे। गुरु जी ने स्वयं के लिए नहीं,बल्कि दूसरों के अधिकारों एवं विश्वासों की रक्षा के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया। अपनी आस्था के लिए बलिदान देने वालों के उदाहरणों से तो इतिहास भरा हुआ है, परंतु किसी दूसरे की आस्था की रक्षा के लिए बलिदान देने की एक मात्र मिसाल है-नवम पातशाह की शहादत। बैठक में रविंदर सिंह,जसवीर सिंह,मनजीत सिंह,मनप्रीत सिंह,हरमनजी सिंह आदि ने विचार रखते हुए सभी को बधाइयां देते हुए गुरु के विचारों को आत्मसात किया।