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तनाव-अकेलेपन से बढ़ रही मेंटल डिसऑर्डर की प्रॉब्लम, 40 मिनट की योग क्लास


वाकिफ कहां जमाना हमारी उड़ान से, वो और थे जो हार गए आसमान से। दीपा मलिक, जिन्होंने रियो पैरालंपिक में परचम लहराया, सबके लिए एक मिसाल हैं। हरिबुद्दा मागर, जिन्होंने दोनों पैर गंवाने के बाद माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई की, संदीप सिंह, जिन्होंने गोली लगने के बाद भी हॉकी टर्फ पर दमदार वापसी की, अरुणिमा सिन्हा, जिन्होंने ट्रेन से फेंके जाने और पैर गंवाने के बाद एवरेस्ट फतह किया, रिषभ पंत-निकोलस पूरन, जिन्होंने भयानक कार एक्सिडेंट के बाद दोबारा मैदान में अपने बल्ले का दम दिखाया। ऐसे तमाम नाम हैं जिन्होंने हालात के सामने घुटने नहीं टेके और मुश्किल हालात में भी फौलादी हौसले से अपनी तकदीर बदली। लेकिन ऐसे भी लोगों की कमी नहीं है, जो जरा सी मुश्किल से घबरा जाते हैं, छोटी-छोटी परेशानी में हिम्मत खो देते हैं, छत से कूदकर, पंखे से लटक कर, जहर खाकर या फिर ट्रेन के सामने आकर जान दे देते हैं।

नेगेटिव इमोशंस की गिरफ्त में आने वाले ऐसे लोगों को इन रियल लाइफ हीरोज से कुछ सीखना चाहिए। जिंदगी में कितनी भी मुसीबतें आएं, न रुकना है, न हारना है क्योंकि जीवन चलते रहने का नाम है और ये बहुत अनमोल है। लेकिन फिर भी लोग इस बात को समझ नहीं पाते। शायद इसलिए भारत में सुसाइड के मामले बढ़ रहे हैं। आंकड़ों की मानें तो हर साल लगभग 1 लाख 70 हजार लोग ये रास्ता अपनाते हैं और इसमें बच्चे क्या और बड़े क्या, हर एज ग्रुप के लोग शामिल हैं। एक स्टडी ये भी कहती है कि पुरुष भले ही दिखने में स्ट्रॉन्ग हों लेकिन मानसिक तौर पर वो महिलाओं से कमजोर हैं और यही वजह है कि वो बिना सोचे-समझे उल्टा-सीधा कदम उठा लेते हैं या फिर जल्दी हार मान लेते हैं। जबकि महिलाएं काफी हद तक खुद को संभाल लेती हैं। महिला हो या पुरुष, बच्चे हो या फिर नौजवान और बुजुर्ग, जरूरी ये है कि जीवन के मोल को समझें। हर काली रात के बाद सुनहरा दिन निकलता है, जिंदगी में किसी भी तरह का दुख है तो यकीन कीजिए जल्दी सुख भी आने वाला है और हर हाल में ये आप तभी सोच पाएंगे जब योग को अपना साथी बनाएंगे और प्राणायाम-ध्यान की आदत डालेंगे।

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