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दोषी सांसदों के चुनाव लड़ने पर न लगाया जाए आजीवन प्रतिबंध-केंद्र सरकार


केंद्र सरकार ने दोषी सांसदों और विधायकों के चुनाव लड़ने पर हमेशा के लिए बैन लगाने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में आज जवाब दिया है। केंद्र सरकार ने जवाब देते हुए कोर्ट से कहा कि आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए जाने वाले राजनेतओं पर चुनाव लड़ने के लिए आजीवन प्रतिबंध लगाना कठोर होगा। केंद्र सरकार ने इस दौरान मौजूदा कानून की वकालत की और इसे ही आगे जारी रखने की बात कही है। शीर्ष अदालत में दाखिल हलफनामे में केंद्र ने कहा कि याचिका में जो अनुरोध किया गया है वह विधान को फिर से लिखने या संसद को एक विशेष तरीके से कानून बनाने का निर्देश देने के समान है, जो न्यायिक समीक्षा संबंधी उच्चतम न्यायालय की शक्तियों से पूरी तरह से परे है। 

हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा कि सवाल है कि आजीवन प्रतिबंध लगाना सही होगा या नहीं। यह पूरी तरह से संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है। केंद्र ने कहा कि यह कानून का स्थापित सिद्धांत है कि दंड या तो समय या मात्रा के अनुसार निर्धारित होते हैं। इतना ही नहीं हलफनामे में यह दलील भी दी गई है कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए मुद्दों के व्यापक प्रभाव हैं और वह साफ रूप से संसद की विधायी नीति के अंतर्गत आते हैं, तथा इस संबंध में न्यायिक समीक्षा की रूपरेखा में उपयुक्त परिवर्तन करना पड़ेगा। अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर दोषी करार दिये गए राजनीतिक नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने के अलावा देश में सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के त्वरित निस्तारण का अनुरोध किया है। 

अपने हलफनामे में, केंद्र ने रेखांकित किया कि शीर्ष अदालत ने निरंतर यह कहा है कि एक विकल्प या दूसरे पर विधायी विकल्प की प्रभावकारिता को लेकर अदालतों में सवाल नहीं उठाया जा सकता। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 (1) के तहत, अयोग्यता की अवधि दोषसिद्धि की तारीख से छह साल या कारावास के मामले में रिहाई की तारीख से छह साल तक है। हलफनामे में कहा गया है कि उक्त धाराओं के तहत घोषित की जाने वाली अयोग्यताएं संसदीय नीति का विषय हैं और आजीवन प्रतिबंध लगाना उपयुक्त नहीं होगा। केंद्र ने कहा कि न्यायिक समीक्षा के मामले में, न्यायालय प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित कर सकता है, हालांकि, याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई राहत में अधिनियम की धारा 8 की सभी उप-धाराओं में ‘‘छह वर्ष’’ के प्रावधान को ‘‘आजीवन’’ पढ़े जाने का अनुरोध किया गया है। 

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