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कब और कैसे करना है करवा चौथ व्रत का पारण? यहां जानें सही विधि और शुभ मुहूर्त


करवा चौथ के दिन महिलाओं के द्वारा निर्जला व्रत रखा जाता है। इस व्रत की शुरुआत सूर्योदय के साथ होती है और रात्रि में चंद्र दर्शन के बाद व्रत का पारण किया जाता है। साल 2025 में 10 अक्टूबर को करवा चौथ का व्रत है। ऐसे में आइए जान लेते हैं कि इस दिन पारण का शुभ मुहूर्त कब रहेगा और व्रत के पारण की पूजा इस दिन कैसे करनी है।

करवा चौथ के दिन चंद्रमा लगभग 8 बजकर 10 मिनट पर उदित होगा। ऐसे में चंद्रमा के उदय होने पर इसके दर्शन करने के बाद ही व्रत का पारण किया जाएगा। हालांकि देश के अलग-अलग स्थानों पर चंद्रोदय का समय अलग-अलग हो सकता है।
करवा चौथ व्रत के पारण की विधि 

करवा चौथ की पूजा मुख्य रूप से शाम के समय सूर्यास्त के बाद ही की जाती है। पूजा के लिये घर के उत्तर-पूर्व दिशा के कोने को अच्छे से साफ करके, लकड़ी का पाटा बिछाकर उस पर शिवजी, मां गौरी और गणेश जी की प्रतिमा, तस्वीर या चित्र रखने चाहिए । बाजार में करवाचौथ की पूजा के लिये कैलेण्डर भी मिलते हैं, जिस पर सभी देवी-देवताओं के चित्र बने होते हैं। इस प्रकार देवी-देवताओं की स्थापना करके पाटे की उत्तर दिशा में एक जल से भरा लोटा या कलश स्थापित करना चाहिए और उसमें थोड़े-से चावल डालने चाहिए। अब उस पर रोली, चावल का टीका लगाना चाहिए और लोटे की गर्दन पर मौली बांधनी चाहिए। कुछ लोग कलश के आगे मिट्टी से बनी गौरी जी या सुपारी पर मौली लपेटकर भी रखते हैं।

इस प्रकार कलश की स्थापना के बाद मां गौरी की पूजा करनी चाहिए और उन्हें सिंदूर चढ़ाना चाहिए। इस दिन चीनी से बने करवे का भी पूजा में बहुत महत्व होता है । कुछ लोग मिट्टी से बना करवा भी रख लेते हैं। आज चार पूड़ी और चार लड्डू तीन अलग-अलग जगह लेकर, एक हिस्से को पानी वाले कलश के ऊपर रख दें, दूसरे हिस्से को मिट्टी या चीनी के करवे पर रखें और तीसरे हिस्से को पूजा के समय महिलाएं अपने साड़ी या चुनरी के पल्ले में बांध लें । कुछ जगहों पर पूड़ी और लड्डू के स्थान पर मीठे पुड़े भी चढ़ाये जाते हैं। बता दूं कि- आप अपनी परंपरा के अनुसार इन सब का चुनाव कर सकते हैं।

अब देवी मां के सामने घी का दीपक जलाएं और करवा चौथ की कथा पढ़ें। फिर पूजा के बाद अपनी साड़ी के पल्ले में रखे प्रसाद और करवे पर रखे प्रसाद को अपने बेटे या अपने पति को खिला दें और कलश पर रखे प्रसाद को गाय को खिला दें। बाकी पानी से भरे कलश को पूजा स्थल पर ही रखा रहने दें। रात को चन्द्रोदय होने पर इसी लोटे के जल से चन्द्रमा को अर्घ्य दें और घर में जो कुछ भी बना हो, उसका भोग लगाएं।

अर्घ्य देने के बाद छलनी से चंद्रमा और अपने पति का चेहरा देखें इसके बाद पति के हाथ से जल ग्रहण करें और उनके पैर छुएं। अंत में थाली में रखे प्रसाद से व्रत का पारण करें। पारण करने के बाद आप घर में बने भोज्य पदार्थों का सेवन कर सकती हैं।

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