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रुद्रपुर: बेहड़ और विकास शर्मा की सियासी भिड़ंत ने जिला पंचायत चुनाव को दिया नया मोड़! महापौर के आक्रामक तेवरों ने बढ़ाई सियासी सरगर्मी


रुद्रपुर। उधम सिंह नगर की कुरैया जिला पंचायत सीट, जहां कभी विकास और जनहित के मुद्दे चुनावी विमर्श का हिस्सा हुआ करते थे, अब पूरी तरह से राजनीतिक क्षत्रपों की जुबानी जंग का अखाड़ा बन चुकी है। इस बार मुकाबला केवल कांग्रेस प्रत्याशी सुनीता सिंह और भाजपा समर्थित कोमल चैधरी के बीच नहीं, बल्कि किच्छा विधायक तिलक राज बेहड़ और रुद्रपुर मेयर विकास शर्मा के बीच राजनीतिक वर्चस्व की सीधी टक्कर का रूप ले चुका है।

प्रचार की शुरुआत में ही यह साफ हो गया था कि कांग्रेस ने इस सीट को अपने प्रभावशाली नेता तिलक राज बेहड़ के नेतृत्व में पूरी ताकत से लड़ने का फैसला किया है। बेहड़ ने कांग्रेस के पूर्व जिला पंचायत सदस्य संदीप चीमा को दरकिनार कर अपनी पसंद की प्रत्याशी सुनीता सिंह को टिकट दिलवाया और स्वयं मैदान में डट गए दूसरी ओर, भाजपा ने शुरुआत में पूर्व विधायक राजेश शुक्ला और वर्तमान विधायक शिव अरोरा को प्रचार की कमान सौंपी थी लेकिन जैसे ही रुद्रपुर के मेयर विकास शर्मा मैदान में उतरे भाजपा का प्रचार आक्रामक होता चला गया।

मेयर विकास शर्मा ने चुनावी सभा में बेहड़ पर हमला बोलते हुए कहा कि “अब समय आ गया है कि तिलक राज बेहड़ को किच्छा से बोरिया-बिस्तर समेटना होगा इसके जवाब में बेहड़ ने भी कड़ी प्रतिक्रिया दी और एक सभा में मेयर को ‘कल का बच्चा’ बताते हुए कांग्रेस की सरकार बनने पर ‘सबक सिखाने’ की बात कह डाली यह बयानबाजी यहीं नहीं रुकी मेयर विकास शर्मा ने फिर प्रेस कांफ्रेंस कर बेहड़ पर शासनकाल में शोषण और अवैध रूप से संपत्ति अर्जित करने के गंभीर आरोप लगाए और उनकी संपत्ति की जांच की मांग कर डाली विकास शर्मा का यह वीडियो जमकर वायरल हो रहा है,पूर्व विधायक राजकुमार ठुकराल के बाद पहली बार किसी नेता ने पूर्व मंत्री तिलकराज बेहड़ के खिलाफ खुलकर बोलने की हिम्मत दिखाई है। आम तौर पर विकास शर्मा एक सधी हुयी और संतुलित भाषा शैली में ही बयानबाजी करते रहे हैं लेकिन इस बार उनके तेवरों ने उन्हें फायर ब्रांड नेताओं की कतार में ला दिया है। उनके इन आक्रामक तेवरों को भविष्य में विधानसभा या फिर लोकसभा चुनाव की तैयारी के रूप में भी देखा जा रहा है।

फिलहाल राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कुरैया की लड़ाई अब केवल एक पंचायत सीट का चुनाव नहीं रही, बल्कि यह क्षेत्रीय नेतृत्व की प्रतिष्ठा की लड़ाई बन चुकी है, जिसमें नेता एक-दूसरे को पछाड़ने की होड़ में जनता की आवाज को पूरी तरह से अनसुना कर चुके हैं। इस जुबानी जंग में सियासी मर्यादाएं तो तार-तार हो ही रही हैं, साथ ही लोकतंत्र का आधार माने जाने वाले जनता के मुद्दे भी पूरी तरह दरकिनार हो गए हैं।

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