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क्या गुरु जी नहीं रहे ?


  • हास्य व्यंग आधारित रचना
विशेषः- कृपया इस रचना को मनोरंजन या मेरी तरह कम बुद्धि के हों तो ज्ञानवर्धन के लिए ही पढ़ें.

क्या गुरु जी नहीं रहे ? अरे यह कब और कैसे हुआ ? अभी तो वह कुछ समय पूर्व मुझसे मिले थे और प्रसन्नचित्त लग रहे थे , गुरु जी के साथ प्रायः टहलने - घूमने वाले उनके एक मित्र ने कहा. गुरु जी के दिवंगत होने की खबर जंगल में आग की भांति फैल गयी. उनसे परिचित समाज के विभिन्न वर्ग के लोगों - दुकानदारों, ठेले वालों, खोमचा वालों, रिक्शा या इ - रिक्शा चालकों सहित कुछ प्रबुद्ध वर्ग के लोगों जैसे वकील, अध्यापक , पत्रकार एवं राजनीतिक व्यक्तियों ने आश्चर्य चकित होते हुए प्रायः यही विचार व्यक्त किया कि अभी ऐसे व्यक्ति को इस दुनिया से इस प्रकार नहीं जाना चाहिए था . गुरु जी जैसे लोगों की तो आज के क्लिष्ट और जटिल होते जा रहे समाज में सजग भूमिका निर्वहन के लिए अभी आवश्यकता थी किन्तु होनी को कौन टाल सकता था ?।

गुरु जी के दिवंगत होने का समाचार सुनते ही लोगों का हुजूम उनके लगभग अर्ध - जर्जर निवास की ओर उमड़ पड़ा . गुरु जी के घर वाले लगभग अर्द्ध मूर्छित अवस्था में लग रहे थे . यह देखकर वहां पहले पहुंचे हुए कुछ उत्साही समाजसेवी टाइप के युवाओं ने भीड़ को बैठने के लिए कुछ कुर्सियों एवं गर्मी को देखते हुए आवश्यकतानुसार पेयजल की व्यवस्था भी कर लिया था. ऐसे समय में यहाँ गुरु जी के परिचितों से ज्यादा अपरिचित किन्तु जिज्ञासुओं की उपस्थिति भी सभी का ध्यान आकर्षित कर रही थी. गुरु जी के परिजनों की स्थिति शोक विह्वल होने के कारण असहज और चिंताजनक थी . प्रायः सभी परिजन उच्च या मंद स्वर में रो रहे थे और उनको चुप कराने वाले कुछ पड़ोसी भी रोने की लगभग खानापूर्ति करते हुए बार बार आँखों को पोंछते जा रहे थे . हालाँकि वहां भीड़ बढती जा रही थी किन्तु लोग मौके की नजाकत समझते हुए माहौल को शांत एवं सामान्य बनाने का असफल प्रयास कर रहे थे . वहां उपस्थित कुछ लोग जो गुरु जी से पूर्णतः परिचित नहीं थे वे गुरु जी के विषय में कुछ बोलने से पूर्व व्यक्तिगत स्तर पर कुछ जानने का प्रयास कर रहे थे।

इसी समय कुछ उत्साही समाजसेवियों ने गुरु जी के बॉडी को ठीक - ठाक बनाये रखने के लिए बर्फ का इंतजाम कर लिया और स्वाभाविक रूप से फैलने वाली दुर्गंध से बचाव के लिए कुछ फूल पत्तियों के साथ ही धूप - दीप और अगरबत्ती का भी प्रबंध किया।

कौन थे गुरु जी जिनके लिए परिचितों से भी ज्यादा अपरिचित भी गमगीन दिखाई दे रहे थे ? वास्तव में गुरु जी एक अवकाश प्राप्त अध्यापक थे जिनके बारे में उनके कुछ भूतपूर्व विद्वान मित्रों ने समाज में यह भ्रम फैला रखा था कि गुरु जी भले ही एक असफल अध्यापक थे किन्तु वे तथाकथित साहित्यकार और पत्रकार भी थे. यही नहीं उनके कुछ मित्र उन्हें एक ऐसा समाजसेवी भी बताने से नहीं चुकते थे जिसने समाज सेवा के नाम पर लोगो को केवल गुमराह ही किया था. गुरु जी भी खुद को समय का साक्षात् दुश्मन बताते और प्रायः इस विन्दु पर जोर देते थे कि वही व्यक्ति सफल माना जाता है जो अपना कार्य अधुरा छोड़कर दूसरों के हर कार्य में टांग फंसाता रहता है और अपना अधिकतम समय अपने बास या संस्था प्रमुख की अहर्निश चापलूसी में व्यतीत करता है. हालांकि गुरु जी भी अपने बॉस की चापलूसी में जुटे रहते थे किन्तु सफलता नहीं मिलती थी . चारों तरफ से हारकर गुरु जी ने एक दिन मौका पाकर अपने इमीडियेट बास से प्रार्थना किया कि उन्हें भी पंजीकृत चापलूसों की महत्वपूर्ण टीम में शामिल कर लिया जाय. इतना सुनते ही साहब ऐसे विदक गए जैसे लाल रंग का बस्त्र देखते ही कोई साड़ भड़क जाता है. इसके बावजूद गुरु जी चापलूसी के अपने प्रयास में नए सिरे से जुट जाते थे ।

गुरु जी की एक विशेषता थी कि वे प्रायः कॉलेज तो जाते, कक्षा में भी जाते मगर मुख्य विषय को छोड़कर विद्यार्थियों पर प्रभाव डालने के लिए फ्रांसिसी लेखक अल्र्बेयर कामू और अमेरिका के जार्ज आर आर मार्टिन जैसे चिंतकों के साथ ही कुछ देशी विद्वानों को भी उद्धृत करते थे . इस बीच वह प्रायः विद्यार्थियों से बार बार कहते कि गलती से पढाई लिखाई सम्बंधित कोई विषय वस्तु मेरे मुंह से निकल जाये तो वे क्षमा करेंगे. गुरु जी की इस बात पर ऐसा ठहाका लगता था कि अगल बगल की कक्षा डिस्टर्ब हो जाती थी और इसकी शिकायत लगभग प्रतिदिन प्रिंसिपल से होनी स्वाभाविक थी. इस पर गुरु जी श्ही - ही, खी - खीश् कर यह् कहते हुए चुप हो जाते कि साहब सदैव उनकी (गुरु जी की ) भलाई के लिए बुरी तरह से चिंतित रहते हैं।

गुरु जी के मित्रों की संख्या सीमित थी लेकिन ये सभी प्रायः विपरीत विचारधारा का होने के कारण आपस में छुटभैया नेताओं की भांति लड़ते रहते थे और उन्हें शांत और संतुलित करने में गुरु जी को तीन - तिकड़म सहित विभिन्न विधाओं का सहारा लेना पड़ता था . कभी कभी तो गुरु जी के साथी अनावश्यक बहस करते हुए अच्छे और सधे हुए पड़ोसियों की तरह गाली - गलौच पर उतर आते . गुरु जी एक ऐसे भोंदू टाइप के पत्रकार भी थे जिनकी लिखी खबर शायद ही गलती से कोई पढ़ लेता था क्योंकि उनके द्वारा अंग्रेजी में लिखित खबरें प्रायः निरर्थक होती थीं जिसे कोई भी नोटिस में लेता ही नहीं था. गुरु जी अपने को एक तथाकथित पत्रकार बताते हुए कहते थे कि अंग्रेजी में लिखी खबर को भले ही कोई न पढ़े लेकिन लिखने वाले का भौकाल टाईट रहता है।

धीरे धीरे गुरु जी के अंतिम संस्कार की तैयारी होने लगी थी. वहां उपस्थित लोग अंतिम संस्कार के लिए परिवार के सदस्यों से विचार विमर्श किये बिना ही किसी ऐसे महानगरी के गंगा तट पर जाना चाहते थे जहां इस कर्मकांड के पश्चात अपने मित्रों से मिलने और शॉपिंग की भी गुंजाइश हो. ऐसी चर्चा के दौरान बीच बीच में रोने धोने की बनावटी लगने वाली आवाज माहौल को विशेष बना रही थी।

अभी गुरु जी के अंतिम संस्कार के लिए तैयारी शुरू होने वाली थी कि उनके एक भूतपूर्व मित्र एक नामी वकील साहब के साथ वहां आ गये जिनके हाथ में कचहरी की फाइल सा कोई कागज था . वकील साहब ने आते ही गुरु जी के परिवार के सदस्यों को बुलाकर जोर जोर से (लगभग चिल्ला कर ) ऐसी सूचना दी कि पूरा माहौल ही बदल गया और लोगों में खुसुर फुसुर शुरू हो गया . इस सूचना से जहाँ एक तरफ शापिंग करने वालों का मंसूबा ध्वस्त हो गया, कुछ अन्य का प्रोग्राम चैपट हो गया तो वहीं दूसरी तरफ गुरु ही के परिवार के सदस्यों ने तो राहत की साँस ली क्योंकि व्यर्थ के क्रिया कर्म में अनावश्यक रूप से खर्च होने वाली धनराशि बच जाएगी।

इस बीच वकील साहब ने अपने हाथ में लिए उस महत्वपूर्ण दस्तावेज को पढ़कर सुनाया जिसके अनुसार गुरु जी ने बिना किसी को कुछ बताये श्देहदान श् का संकल्प लिया था. गुरु जी के इस संकल्प ने तो अचानक उन्हें वहां उपस्थित सबकी निगाह में महान बना दिया. क्योंकि गुरु जी को लगभग सभी लोग , विशेष रूप से उनके परिजन और चुनिन्दा मित्र, जीवन भर उन्हें घोंचू, समय का दुश्मन, आलसी और निठल्ला ही समझते रहे।

इसी बीच किसी सरकारी अस्पताल का एक जीर्ण अवस्था युक्त एम्बुलेंस लगने वाला वाहन भी आ गया और गुरु जी सशरीर अपनी अनंत यात्रा पर चले गए . इसी बीच गुरु जी के एक ईर्ष्यालु मित्र ने लगभग उन्हें गाली ही देते हुए दुखी मन से चिल्लाकर कहना शुरु कर दिया कि अब मुझे भी देहदान का संकल्प लेना ही पड़ेगा अन्यथा मेरे परिवार वाले मुझे घर से ही भगा देंगे . गुरु जी के मित्र के इस कथन पर वहां उपस्थित कुछ बचे खुचे लोग लगभग ठहाका लगाते हुए अपने गंतव्य की ओर चल दिए।

लेखक डॉ. अंगद सिंह निशीथ
अवकाश प्राप्त प्रोफेसर और पत्रकार
(लेखन की अगली किश्त में गुरु जी के सम्मान ने आयोजित श्रद्धांजलि समारोहों की श्रनिंग कमेंट्रीश् प्रस्तुत की जाएगी )

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