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प्रतापगढः मेड़ (सीट) पर अरहर (तूर/पिजन पी) की खेती करना बहुत ही प्रभावी और लाभकारी


प्रतापगढ़। जिले में जिला कृषि अधिकारी अशोक कुमार ने सोमवार को बताया है कि मेड़ (सीट) पर अरहर (तूरध्तुअरध्पिजन पी) की खेती करना एक बहुत ही प्रभावी और लाभकारी तकनीक है, खासकर छोटे किसानों के लिए। यह विधि मेड़ों का उपयोग करके अतिरिक्त उत्पादन और मिट्टी के कटाव को रोकने में सहायक होती है। हमारे जिले की मिट्टी एवं जलवायु अरहर (तूरध्पिजन पी) की खेती के लिए अत्यंत उपयुक्त है। विशेषकर मेड़ (सीट) विधि से खेती करने पर आप पानी की बचत करते हुए भी बेहतर उपज प्राप्त कर सकते हैं। मेड़ पर तैयार करने की विधि के सम्बन्ध में बताया है कि मेड़ की ऊंचाई लगभग 30-45 सेमी और चैड़ाई 45-60 सेमी रखें, मेड़ के ऊपरी हिस्से को समतल कर लें ताकि बीज बोने में आसानी हो। मेड़ों के बीच की दूरी 2-3 मीटर रखें ताकि पौधों को फैलने के लिए जगह मिले। बीज दर प्रति हेक्टेयर 12-15 किलोग्राम बीज (उन्नत किस्में जैसे यूपीएएस-120, नरेन्द्र-1, आईसीपीएल-87119), बुवाई का समय खरीफ के मौसम में जून-जुलाई (वर्षा शुरू होने पर), बुवाई विधिः मेड़ के ऊपर 2-3 सेमी गहराई में बीज बोएं और हल्की मिट्टी से ढक दें। पौधों के बीच 30-45 सेमी की दूरी रखें।

खाद एवं उर्वरक के सम्बन्ध में बताया है कि गोबर की खादः 5-10 टन प्रति हेक्टेयर खेत तैयार करते समय डालें। फॉस्फोरस और पोटाश बुवाई के समय, नाइट्रोजन दो बार (बुवाई और 30 दिन बाद) दें। सिंचाई के सम्बन्ध में बताया है कि अरहर को कम पानी की आवश्यकता होती है, लेकिन यदि वर्षा न हो तो फूल आने (बुवाई के 60-70 दिन बाद) और फली बनते समय हल्की सिंचाई करें। मेड़ पर खेती में जल निकासी अच्छी होती है, जिससे जड़ सड़न से बचाव होता है। खरपतवार नियंत्रण के लिये बुवाई के 20-25 दिन बाद निराई-गुड़ाई करें। कीट एवं रोग प्रबंधन के सम्बन्ध में बताया है कि प्रमुख कीटः प्लू मॉथ, पोड बोरर (नीम आधारित कीटनाशक या इमिडाक्लोप्रिड का प्रयोग करें)। प्रमुख रोगः विल्ट, स्टेम कैंकर (रोगरोधी किस्में लगाएं और फसल चक्र अपनाएं)। कटाई एवं उपज हेतु फसल 160-180 दिन में पककर तैयार हो जाती है (पत्तियों का पीला पड़ना और फलियों का सूखना संकेत है)। औसत उपजः 15-20 क्विंटलध्हेक्टेयर (उन्नत किस्मों से 25-30 क्विंटल तक)। उन्होने बताया है कि मेड़ पर लगाने से जड़ों को हवा मिलती है और फली सड़न कम होती है। अरहर के साथ ’सोयाबीन या उड़द’ की अंतरवर्तीय खेती कर सकते हैं।

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