पाकिस्तान और श्रीलंका ही नहीं, चीन के कर्ज में डूब चुके हैं ये 10 देश
June 07, 2025
क्या चीन कर्ज देकर ‘मित्रता’ नहीं, बल्कि ‘दासता’ फैला रहा है? यह सवाल अब वैश्विक स्तर पर गूंजने लगा है. दुनिया के कई देश चीनी कर्ज के बोझ तले कराह रहे हैं, इनमें तीन भारत के पड़ोसी हैं. चीन ने अपनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत कई देशों को अरबों डॉलर का कर्ज दिया, मगर अब वही कर्ज इन राष्ट्रों के लिए आर्थिक गुलामी का फंदा बन गया है. कुछ देशों को तो अपनी बंदरगाहें तक सौंपनी पड़ीं, जबकि कुछ राष्ट्रों की राजनीति तक हिल गई. जानिए उन 10 देशों की कहानी जो आज चीन के कर्ज जाल में जकड़े हुए हैं.
पाकिस्तान इस लिस्ट में सबसे ऊपर है. उसके कुल विदेशी कर्ज में 23% हिस्सा केवल चीन का है. BRI के तहत चीन ने CPEC में अरबों डॉलर का निवेश किया. लेकिन अब पाकिस्तान की हालत ये है कि वह कर्ज चुकाने में न पूरी तरह सक्षम है और न ही स्वतंत्र. CPEC अब एक अवसर नहीं, एक बोझ बन चुका है.
अफ्रीका का छोटा सा देश जिबूती, चीन की बंदरगाह परियोजनाओं और कर्ज से इतना दब गया कि उसे एक बंदरगाह चीन को सौंपनी पड़ी, जो अब चीनी सैन्य उपयोग में आ रही है. कर्ज के नाम पर चीन ने यहां अपनी सेना बिठा दी है
श्रीलंका चीनी कर्ज के चलते आर्थिक दिवालिया घोषित हो चुका है. इसके बाद हंबनटोटा बंदरगाह 99 साल की लीज पर चीन को देना पड़ा. देश में राजनीतिक संकट इतना गहराया कि राजपक्षे सरकार को सत्ता से हाथ धोना पड़ा.
मालदीव पर चीन का प्रभाव तेजी से बढ़ा है. बुनियादी ढांचे के नाम पर मिले कर्ज ने देश को चीन का आर्थिक बंधक बना दिया. इसके ज़रिये चीन भारत को चारों ओर से घेरने की कोशिश में जुटा है.
लाओस में चीन ने जलविद्युत और ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट में निवेश किया, लेकिन देश उन्हें संभाल नहीं सका. अब हालत यह है कि लाओस ने कई परियोजनाएं चीन को सौंप दी हैं और फिर भी कर्ज खत्म नहीं हो रहा.
मंगोलिया के खनिज संसाधनों पर चीन की नज़र है. निवेश और कर्ज की आड़ में चीन ने यहां गहरी पैठ बना ली है. अब देश के पास अपनी परिसंपत्तियों को बचाने तक की ताकत नहीं बची है.
अंगोला, जो तेल के लिए जाना जाता है, अब चीन के कर्ज का सबसे बड़ा शिकार बन चुका है. बुनियादी ढांचे और तेल उद्योग में कर्ज देकर चीन ने देश को इस कदर जकड़ लिया है कि वह स्वतंत्र आर्थिक नीति तक नहीं बना पा रहा.
वेनेजुएला ने तेल परियोजनाओं में चीनी निवेश को वरदान समझा, लेकिन अब वही निवेश आर्थिक अभिशाप बन चुका है. देश की अर्थव्यवस्था चरमराई हुई है और चीन का कर्ज चुकाना एक दुर्लभ सपना बन गया है.
कंबोडिया में चीन रियल एस्टेट और इन्फ्रास्ट्रक्चर में भारी निवेश कर चुका है. लेकिन यह निवेश अब देश के रणनीतिक स्वाभिमान को चुनौती दे रहा है. कर्ज की शर्तें इतनी कठोर हैं कि देश को अपनी संप्रभुता से समझौता करना पड़ सकता है.
केन्या में रेलवे और बंदरगाहों पर चीन ने अरबों डॉलर लगाए. शुरुआत में यह विकास प्रतीत हुआ लेकिन अब यह राजकोषीय खतरा बन गया है. देश की आर्थिक स्वतंत्रता खतरे में है और पुनर्भुगतान की राहें कठिन हो चुकी हैं.