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सुप्रीम कोर्ट ने एसोसिएट प्रोफेसर अली खान को दी अंतरिम जमानत


ऑपरेशन सिंदूर को लेकर कथित तौर पर विवादित टिप्पणी करने के मामले में गिरफ्तार किए गए अशोका यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अंतरिम जमानत दे दी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हरियाणा सरकार को नोटिस भी जारी किया है। फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एसोसिएट प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद पर कई शर्ते भी लगाई हैं। आइए जानते हैं कि कोर्ट ने सुनवाई के दौरान क्या-कुछ कहा है।

सुप्रीम कोर्ट में अशोका यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर अली खान की ओर से वकील कपिल सिब्बल पेश हुए थे। अली खान की पोस्ट की भाषा पर सवाल उठते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि "हमें यकीन है कि वह बहुत शिक्षित हैं। आप दूसरों को चोट पहुंचाए बिना बहुत सरल भाषा में अपनी बात कह सकते थे। ऐसे शब्दों का इस्तेमाल कर सकते थे जो सरल और सम्मानजनक हों।"

सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मामले की जांच के लिए 3 IPS अधिकारियों की SIT बनाई है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को अंतरिम जमानत देते हुए निर्देश दिया है कि वह वह जांच के दायरे में आने वाले दोनों पोस्ट से संबंधित कोई भी ऑनलाइन लेख या भाषण नहीं लिखेंगे। साथ ही युद्ध से संबंधित कोई भी पोस्ट नहीं लिखेंगे। उन्हें अपना पासपोर्ट सोनीपत की अदालत में सरेंडर करना होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफेसर अली खान को भारत की धरती पर आतंकवादी हमलों या भारत द्वारा दी गई जवाबी प्रतिक्रिया के बारे में कोई भी टिप्पणी करने से रोक दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने तीन IPS अधिकारियों वाली एक SIT के गठन का आदेश दिया है, जिसमें एक महिला अधिकारी भी शामिल होगी जो राज्य से बाहर की होगी। सुप्रीम कोर्ट ने 24 घंटे के भीतर SIT का गठन पूरा करने का निर्देश दिया है और जाए प्रोफेसर को जांच में शामिल होने और जांच में पूरा सहयोग करने को कहा है।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस कांत ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि "सभी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। क्या यह सब बात करने का समय है? देश पहले से ही इन सब से गुजर रहा है। राक्षस आए और हमारे लोगों पर हमला किया और इस समय हमें एकजुट होना चाहिए। ऐसे मौकों पर सस्ती लोकप्रियता क्यों हासिल की जाए? अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वाले समाज के लिए यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि जानबूझकर शब्दों का चयन दूसरे पक्ष को अपमानित करने और असहज करने के लिए किया जाता है।

जस्टिस कांत ने आगे कहा कि "एक प्रोफेसर होने के नाते उनके पास इस्तेमाल करने के लिए डिक्सनरी के शब्दों की कमी नहीं होनी चाहिए। वह ऐसी भाषा का इस्तेमाल कर सकते हैं जिससे दूसरों की भावनाओं को ठेस न पहुंचे, एक तटस्थ भाषा का इस्तेमाल किया जा सकता था।"

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