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प्रतापगढः वृद्धजन समाज के अमूल्य धरोहर,सेवा व सम्मान करें - शांडिल्य दुर्गेश


प्रतापगढ़/प्रयागराज। अपने विचार व लेखनी से समाज को हमेशा सकारात्मक दिशा देने वाले शांडिल्य दुर्गेश ने स्वस्थ समाज के निर्माण में वृद्धजनों की भूमिका व वर्तमान में हो रही उनकी उपेक्षा पर सभी का ध्यान आकृष्ट कराते हुये पुनर्जागृति पर जोर देते हुये कहा है कि वृद्धजन इस धरती के अमूल्य धरोहर हैं,इनका सेवा व सम्मान सर्वोपरि होना चाहिये।यदि किसी ने धरती के भगवान इन बुजुर्गों का अपमान किया तो ध्यान रखियेगा जैसी करनी,वैसा फल अर्थात् जो आप करेंगे उसका परिणाम अवश्य भुगतेंगे।वर्तमान में मॉडर्न मॉम-डैड, मॉडर्न एजुकेशन के साथ पर्सनॉलिटी डेवलपमेंट के लिये शाम को पाल्य के स्कूल से वापस आने के बाद उन्हें ट्रेनिंग देने वाले एक्सपर्ट के पास भेजते हैं।यथार्थ यह है कि यदि आप अपने पाल्य के व्यक्तित्व का वास्तविक विकास करना चाहते हैं तो उन्हें बुजुर्ग माता-पिता व अन्य वृद्धजनों का सानिध्य दिलवायें,कुछ दिन तक उनके संरक्षण में रखें,जिससे मानवीय व सामाजिक मूल्यों के साथ व्यक्तित्व का विकास सम्भव हो सके।यदि आपने केवल आधुनिकता के चकाचैंध भरी संस्कृति में अपने पाल्य को रखा तो पीढ़ी में राक्षसी प्रवृत्ति के धुंधकारी आयेंगे जो सब कुछ नष्ट कर देंगे।बुजुर्गध्वृद्ध की सेवा,साक्षात् ईश्वर की सेवा है।तैत्तिरीय उपनिषद् में यह उल्लिखित है-ष्मातृदेवो भव।पितृदेवो भव।ष्इसके बाद भी बुजुर्ग माता-पिता पर आये दिन अत्याचार की घटनायें बढ़ रही हैं।उन्हें बंधक बनाकर एक कमरे में रख दिया जाता है,कभी समय से भोजन-दवा आदि मिल भी जाता है तो कभी वह भी नही मिलता,अति तो तब हो जाती है जब उन्हें भोजन -पानी इसलिये नही दिया जाता कि कहीं वृद्धावस्था के कारण बिस्तर पर ही मल-मूत्र का त्याग न कर दें।जिस उम्र में पारिवारिक सहारा,सेवा व प्रेम की आवश्यकता होती है उस समय एकल परिवार से प्रभावित होकर आज के युवा वृद्ध माता-पिता को परिवार से अलग कर देते हैं,कभी-कभी तो उनके साथ मारपीट की घटना के समाचार भी अखबार व सोशल मीडिया के माध्यम से प्राप्त होते हैं।वृद्धजनों की प्रताड़ना को ईश्वर भी बर्दाश्त नही करते।कहा गया है-ष्अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम।ष्(अभिवादनशील और नित्य वृद्धों की सेवा करने वाले व्यक्ति की आयु, विद्या, यश और बल में वृद्धि होती है।)लेकिन आज के युवाओं और युवतियों को नही पसंद।स्वच्छंद और परिवार विध्वंसक सोच ने बुजुर्गों के प्रति हमारी एक मजबूत संस्कृति व संस्कार को मृतप्राय बना दिया।श्री रामचरित मानस में माता-पिता के सम्बन्ध में एक प्रसंग आता है-ष्मातु पिता गुर प्रभु कै बानी। बिनहिं बिचार करिअ सुभ जान अर्थात - माता-पिता, गुरु और स्वामी की बात को बिना ही विचारे शुभ समझकर करना (मानना) चाहिए।मानस में एक और प्रेरक प्रसंग आता है-ष्सुनु जननी सोइ सुतु बड़भागी। जो पितु मातु बचन अनुराग तनय मातु पितु तोषनिहारा। दुर्लभ जननि सकल संसार(हे माता! सुनो, वही पुत्र बड़भागी है,जो पिता-माता के वचनों का अनुरागी (पालन करने वाला) है। (आज्ञा पालन द्वारा) माता-पिता को संतुष्ट करने वाला पुत्र, हे जननी! सारे संसार में दुर्लभ है)परंतु समस्या यह है कि हम श्री रामचरित मानस या कोई भी धार्मिक ग्रंथ नही पढ़ेंगे और न ही हम बुजुर्गों के साथ बैठेंगे और न ही उनकी बात मानेंगे,सेवा करना तो दूर की बात साबित हुई।इसका वास्तविक कारण यह है कि आज हमारा आदर्श बदल चुका है,हमारा आदर्श,परिवार विध्वंसक धारावाहिक व फिल्में बन गई हैं,चरित्रहनन करने वाले रील्स प्रत्येक तीस सेकण्ड में हमारे मनोमस्तिष्क को बदल रहें हैं,कभी हम हँसी-मजाक का दृश्य देखते हैं,कभी अश्लीलता का नंगा नाच देखते हैं,कभी हत्या व बलात्कार के दृश्य देखते हैं।आज सोशल मीडिया पर अस्वस्थ मनोरंजन की भरमार है,मर्यादायुक्त व बुजुर्गोंध्वृद्धों की सेवा पर शायद ही कोई रील्स व धारावाहिक देखने को मिले।जिसका स्पष्ट प्रभाव इंसान के व्यक्तित्व पर पड़ता है और व्यक्ति अस्वस्थ मनोरंजन के कारण अस्थिरता का शिकार हो जाता है।दुष्परिणाम सामने आ ही रहा है कभी वह बुजुर्ग माता-पिता को अपमानित करता है तो कभी वह प्रताड़ना की पराकाष्ठा को पार कर जाता है।यह विचारणीय है कि मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम की इस पवित्र धरती के रहने वाले हम इंसान और यह समाज जा कहाँ रहा है।यदि समय रहते समाज नही जागृत हुआ तो समाज का पतन सुनिश्चित है और परिणाम भयावह होगा।

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