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ईमानदारी, प्यार और स्नेह बच्चे का प्रोटेक्शन तय करने का आधार नहीं-सुप्रीम कोर्ट


सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि बच्चों की कस्टडी को लेकर अलग-अलग रह रहे दंपति के बीच कानूनी लड़ाई में उनका कल्याण ‘‘सर्वोपरि’’ है. न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा, ‘‘बच्चों की कस्टडी के मामलों में, बच्चे के कल्याण को सर्वोपरि माना जाना चाहिए. माता-पिता में से किसी एक द्वारा दिखाई गई अत्यधिक ईमानदारी, प्यार और स्नेह, अपने आप में बच्चे का प्रोटेक्शन तय करने का आधार नहीं हो सकता.’’

सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी उस फैसले में की, जिसमें केरल हाई कोर्ट के 11 दिसंबर 2014 के आदेश को खारिज कर दिया गया है. हाई कोर्ट ने दो बच्चों का अंतरिम प्रोटेक्शन प्रत्येक महीने 15 दिनों के लिए पिता को दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस व्यवस्था को ‘‘अव्यवहार्य’’ और बच्चों के कल्याण के लिए ‘‘हानिकारक’’ बताया.

यह फैसला बच्चों की मां की अपील पर आया, जिन्होंने अलग रहे पति के पक्ष में हाई कोर्ट के अंतरिम कस्टडी आदेश को चुनौती दी थी. बच्चों की मां एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर, जबकि पिता सिंगापुर में एक निर्माण कंपनी में महाप्रबंधक हैं. दंपति ने 2014 में शादी की थी और उनके दो बच्चे हैं. उनकी बेटी का जन्म 2016 में, जबकि बेटे का 2022 में जन्म हुआ था.

आपस में अनबन होने के बाद दंपति 2017 से अलग-अलग रह रहे थे, हालांकि 2021 में एक संक्षिप्त सुलह के बाद उनके दूसरे बच्चे का जन्म हुआ. बच्चों के पिता ने जून 2024 में तिरुवनंतपुरम में एक परिवार कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और संरक्षक एवं प्रतिपाल्य अधिनियम के तहत बच्चों की स्थायी कस्टडी प्रदान करने का अनुरोध किया. पारिवार कोर्ट ने पिता को सीमित रूप से मुलाकात के अधिकार दिए, जिसमें मासिक व्यक्तिगत मुलाकात और साप्ताहिक वीडियो कॉल शामिल हैं.

हाई कोर्ट ने कस्टडी व्यवस्था में संशोधन करते हुए पिता को हर महीने 15 दिन की कस्टडी की अनुमति दी, बशर्ते कि वह तिरुवनंतपुरम में किराये पर एक फ्लैट लेकर एक आया रखे और बच्चों के लिए परिवहन की व्यवस्था करे.

हाई कोर्ट ने माता-पिता को वीडियो कॉल की सुविधा भी दी, जब बच्चा दूसरे के प्रोटेक्शन में रहेगा. हालांकि, आदेश को खारिज करते हुए, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति मेहता ने पीठ के लिए फैसला लिखते हुए कहा, ‘‘अंतरिम व्यवस्था न तो व्यवहार्य है और न ही बच्चों के मानसिक और शारीरिक कल्याण के लिए अनुकूल है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह व्यवस्था बच्चों की विकास आवश्यकताओं, विशेष रूप से पोषण और भावनात्मक सुरक्षा की आवश्यकता पर विचार करने में विफल रही. कोर्ट ने कहा, ‘‘हालांकि, साथ ही हम इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं कर सकते कि प्रतिवादी एक स्नेही पिता है, जिसने अपने बच्चों के पालन-पोषण में समान रूप से और अभिभावक की भूमिका निभाने की अपनी गहरी इच्छा दिखाई है. इस प्रकार उसे बच्चों की देखरेख से पूरी तरह से वंचित करना न तो स्वीकार्य है और न ही न्यायोचित है और इससे पारिवारिक जुड़ाव की सभी संभावनाएं नष्ट हो सकती हैं.’

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