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अमेठीः नवरात्र! श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है कालिकन धाम


अमेठी। नवरात्र पर्व पर संग्रामपुर ब्लॉक मुख्यालय  पर स्थित कालिकन धाम में नवरात्रि पर्व पर  श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रहती है। इस अवसर पर नवदिनों तक परिसर के बाहर मेला भी लगता है जनपद ही नहीं आसपास के जिलों से हजारों की तादाद में श्रद्धालु यहां दर्शन पूजन के लिये पहुंचते हैं। पुराणों में भी इसकी महिमा का बखान है। मान्यता है कि कालिका देवी भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। चैत्र नवरात्र का प्रथम दिन आज रविवार से ही भक्तों की अपार भीड़ बढ़ाना शुरू हो गई है मां का दरबार भक्तों के दर्शन पूजन के लिए सज गए हैं। वहीं देवी स्थलों के बाहर दुकान लगाने वाले लोग पूरे दिन अपनी दुकान को सजाते नजर आए। पुलिस प्रशासन की ओर से मेले में उमड़ने वाली भीड़ को देखते हुए चार पहिया और दो पहिया वाहनों के आवागमन पर रोक लगा दी है। प्रतापगढ़ की ओर से आने वाले वाहन कालिकन इंटर कॉलेज के मैदान पर पार्किंग होगी वही अमेठी की ओर से आने वाले वाहन ब्लॉक मुख्यालय के सामने मैदान में पार्किंग होगी  संग्रामपुर में वैसे तो कई छोटे बड़े मंदिरों में मां के विभिन्न रूपों  की पूजा अर्चना की जाती है। लेकिन शक्तिपीठ कालिकन धाम पर भक्तों का नवरात्र के दौरान कुछ ऐसा रेला होता है कि पूरे नवरात्र भर पुलिस प्रशासन व मंदिर समिति को व्यवस्थाएं बनाए रखने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। मंदिर के पुजारी श्री महराज  ने बताया कि नवरात्रि के पहले सभी तैयारियां कर ली गई है। मंदिर की सजावट के साथ सभी तैयारियां हो गई है। रविवार को सुबह चार बजे आरती के बाद भक्तों के  दर्शन के लिए कपाट खोल दिए गए।

पौराणिक महत्व

मान्यताओं के अनुसार, यहां के जंगलों में च्यवन मुनि का आश्रम था। हजारों साल पहले की बात है। जब च्यवन मुनि तपस्या करते हुए इतने लीन हो गए कि उनके ऊपर दीमकों ने अपनी बांदी (दीमक जहां रहते हैं) बना दी। उसी समय अयोध्या के राजा सरजाद अपनी पूरी सेना और परिवार के साथ च्यवन मुनि के दर्शन के लिये उनके आश्रम पहुंचे। राजा की पुत्री सुकन्या अपनी साखियों के साथ आश्रम घूमने निकली थी। तभी उसने दीमक की बांदी में जुगनू की तरह जलते हुए दो छेद दिखाई दिए। राजकुमारी ने कौतुहल बस एक तिनका उठाया और छेद में चुभो दिया ।जिसमें से खून निकलने लगा। खून निकलता देख राजकुमारी वहां से भाग निकली। दीमक की बांदी के छेद में तिनका घुसने से च्यवन मुनि का ध्यान भंग हुआ तो उन्होंने श्राप दे दिया। जिससे राजा के सैनिकों में महामारी फैल गयी। राजा को जैसे ही पूरी हकीकत पता चली। उन्होंने आश्रम के सभी मुनियों से मिलकर च्यवन मुनि से क्षमा-याचना की और अपनी पुत्री का विवाह महर्षि से कर वापस लौट गए। कुछ समय बाद वहां पहुंचे वैद्य अश्विनी कुमार ने महर्षि से कहा कि वे उनकी आंखों की ज्योति वापस लौटा देंगे और युवा बना देंगे। बदले में महर्षि उन्हें अमृतपान कराएंगे। वैद्य अश्वनी कुमार ने शर्त के अनुसार महर्षि की आंखें ठीक कर उन्हें युवा बना दिया। महर्षि के अनुरोध पर अयोध्या नरेश ने सोमयज्ञ कराया। जिसमें सभी देवता और वैद्य अश्विनी कुमार बुलाए गए। जिसमें अश्विनी कुमार को सोमपान कराए जाते देख कुपित इंद्र ने राजा को मारने के लिए वज्र उठा लिया। च्यवन ने स्तंभन मंत्र से इंद्र को जड़वत कर दिया और अमृत की रक्षा के लिए ऋषियों के आह्वान पर कुंड की शिलापट पर मां कालिका प्रगट हुई। आज उसी स्थान पर कालिकन धाम स्थापित है। तबसे देवी मां यहां विराजमान हैं और सबकी मनोकामना पूरी करती हैं।

चंचल तिवारी Verified Badge

Reported by: Senior Journalist

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