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बिहार में वोटर लिस्ट की जांच और सुधार का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट


बिहार में मतदाता सूची की जांच और सुधार का विवाद सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने याचिका दाखिल कर चुनाव आयोग के इस कदम का विरोध किया है. वकील प्रशांत भूषण के जरिए दाखिल याचिका में आयोग के आदेश को मनमाना और निष्पक्ष चुनाव को प्रभावित करने वाला बताया गया है.

एनजीओ ने कहा है कि चुनाव आयोग के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (विशेष सघन पुनरीक्षण) अभियान के चलते लाखों लोगों का नाम वोटर लिस्ट से हट जाने की आशंका है. इस तरह यह लोग बिहार विधानसभा चुनाव में मतदान से वंचित रह जाएंगे. इसलिए 24 जून 2025 को जारी चुनाव आयोग के आदेश को तत्काल निरस्त करने की जरूरत है.
28 जून से बिहार में मतदाता पुनरीक्षण अभियान शुरू हो चुका है. यह 30 सितंबर तक पूरा हो जाएगा. इसके बाद नई मतदाता सूची जारी होगी. बिहार में आरजेडी और कांग्रेस जैसी विपक्षी पार्टियां इस अभियान को अलोकतांत्रिक बताते हुए विरोध कर रही हैं. अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है
ADR की याचिका में कहा गया है कि मतदाता की पुष्टि के लिए जिस तरह के दस्तावेज मांगे जा रहे हैं, वह अव्यवहारिक है. करोड़ों मतदाताओं की पुष्टि से जुड़ी जांच-सुधार की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए बहुत कम समय रखा गया है. ऐसे में यह साफ है कि बहुत से मतदाताओं का नाम वोटर लिस्ट से बाहर हो जाएगा.

स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव संविधान का अभिन्न हिस्सा है. चुनाव आयोग का फैसला उसे प्रभावित कर रहा है. याचिका में दावा किया गया है कि विशेष सघन पुनरीक्षण अभियान संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325 और 326 के खिलाफ है. साथ ही यह जनप्रतिनिधित्व कानून, 1950 और रजिस्ट्रेशन ऑफ इलेक्टर्स रूल्स, 1960 के प्रावधानों के भी विरुद्ध है.

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