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प्रतापगढः मिट्टी की गुणवत्ता को सुधारने व फसल उत्पादन बढ़ाने हेतु कृषक भाई ग्रीष्मकालीन जुताई अवश्य करें


प्रतापगढ़। जिले में जिला कृषि रक्षा अधिकारी अशोक कुमार ने गुरुवार को किसान भाईयों से कहा है कि ग्रीष्मकालीन जुताई एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो फसल के लिये मिट्टी को तैयार करने में मदद करती है। यह प्रक्रिया मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने, खरपतवार को नियंत्रण करने, कीटों और बीमारियों को नष्ट करने में मदद करती है। यह समय ग्रीष्मकालीन जुताई के लिये सबसे अच्छे समय रबी की फसल कटाई के बाद से लेकर जून तक होता है। उन्होने बताया है कि ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई लगभग 9-12 इंच गहरी जुताई करनी चाहिये, अधिकांश किसान एक निश्चित गहराई पर (6-7 इंच) जुताई करते है जिससे वर्षा के कुछ समय बाद जल का अतिरिक्त प्रवाह प्रारम्भ हो जाता है। गर्मी के समय खेत की जुताई खेत में ढाल की विपरीत दिशा में करें। फसल की कटाई के बाद खेत जुताई के लिये पर्याप्त नमी होनी चाहिये अर्थात फसल की कटाई के तुरन्त बाद जुताई करें इससे जुताई अच्छी तरह से होती है। ईंधन की खपत की कम होती है तथा उपकरण के आयु में भी बढ़ोत्तरी होती है। मिट्टी की कठोर उपरी परत को तोड़ने और गहरी जुताई के कारण मिट्टी की अंतः जल ग्रहण की क्षमता बढ़ जाती है जिससे इन सीटू नमी संरक्षण में वृद्धि होती है। उन्होने कृषकों से अपील किया है कि ग्रीष्मकालीन जुताई अवश्यक करें, ग्रीष्मकालीन जुताई से कृषि में कई लाभ होते है। यह मिट्टी की गुणवत्ता को सुधारने और फसल उत्पादन बढ़ाने में मदद् करती है।

जिला कृषि रक्षा अधिकारी ने ग्रीष्मकालीन जुताई के लाभ के सम्बन्ध में बताया है कि गहरी जुताई से मिट्टी ढीली होती है जिससे हवा और पानी का संचार बेहतर होता है। मिट्टी की जलधारण क्षमता बढ़ती है जो बारिश के पानी को सोखने में मदद करती है। गर्मी में जुताई करने से खरपतवार के बीज, जड़े और कंद नष्ट हो जाते है जिससे अगली फसल में खरपतवार की समस्या कम होती है। धूप में जुताई करने से मिट्टी में छिपे हानिकारक कीटों (जैसे दीमक, सफेद लट) के अंडे और लार्वा नष्ट हो जाते है। फफूंदी और बैक्टीरिया जनित रोगों का प्रकोप कम होता है। गर्मी में जुताई से फसल अवशेष खाद और कार्बनिक पदार्थ तेजी से विघटित होते है जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है। ग्रीष्मकालीन जुताई से मिट्टी की ऊपरी सतह सूख जाती है जिससे वाष्पीकरण द्वारा नमी का कम नुकसान होता है। बारिश का पानी मिट्टी में अच्छी तरह समा जाता है। ग्रीष्मकालीन जुताई से खेत अगली फसल जैसे खरीफ के लिये अच्छी तरह तैयार हो जाता है। गहरी जुताई से मिट्टी में जल निकासी बेहतर होती है जिससे लवणीय एवं क्षारीय प्रभाव कम होते है। ग्रीष्मकालीन जुताई एक प्राकृतिक और प्रभावी तकनीक है जो मिट्टी को स्वस्थ बनाकर उत्पादकता बढ़ाती है। यह किसानों के लिये एक स्थायी और लाभदायक कृषि पद्धति है।

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