लखीमपुर खीरी: तराई की मिट्टी में जिंक पहले से नहीं, पोषक तत्व भी हो गए कम
विधान केसरी समाचार
लखीमपुर खीरी। तराई के खीरी जिले की मिट्टी में जिंक पहले से नहीं है। अब अन्य पोषक तत्व भी नष्ट हो रहे हैं, जिसका सीधा असर मिट्टी की सेहत पर पड़ रहा है। अत्यधिक रसायनिक खाद का इस्तेमाल करने से मिट्टी के उपजाऊपन पर असर पड़ रहा है।जिले की मिट्टी में जीवांश कार्बन, फॉसफोरस, पोटेशियम, नाइट्रोजन आदि लगभग सभी पोषक तत्व सामान्य से काफी कम हैं। मिट्टी में पोषक तत्व आज से नहीं, लंबे समय से कम हैं। लाख कोशिश के बाद भी कोई सुधार नहीं हुआ। छाउछ चैराहे के पास उप कृषि निदेशक कार्यालय परिसर में मृदा परीक्षण प्रयोगशाला है।इस प्रयोगशाला में मिट्टी के मुख्य व सूक्ष्म पोषक तत्वों की जांच की जाती है। मिट्टी जांच के लिए नाम-मात्र का शुल्क है। कोई भी किसान अपने खेत की मिट्टी लाकर यहां जांच करा सकता है। जांच में अगर कोई पोषक तत्व कम पाए जाते हैं तो प्रयोगशाला से उसे पूरा करने के लिए सुझाव भी दिए जाते हैं।
पिछले वर्ष मृदा स्वास्थ्य परीक्षण के तहत अभियान चलाकर करीब 10326 मिट्टी के नमूने लिए गए थे। जांच रिपोर्ट में जीवांश कार्बन में 1829 नमूने अति न्यून स्तर, 8418 न्यून स्तर पर पाए गए, जबकि 79 की रिपोर्ट मध्यम आईं। फॉस्फेट में 359 नमूने अति न्यून, 9910 में न्यून और 57 की मध्यम रिपोर्ट आई हैं। जबकि, 10231 नमूनों में पोटाश मध्यम, 95 में उच्चस्तर पर पाया गया।
प्रयोगशाला के टेक्नीशियन अनूप अवस्थी ने बताया कि इस वर्ष भी मृदा स्वास्थ्य परीक्षण के लिए जिले के अलग-अलग हिस्सों के 15 हजार मिट्टी के नमूने लिए गए थे। सभी नमूनों की जांच प्रयोगशाला में की है। पिछले वर्ष की भांति ही इस बार भी स्थिति वैसे ही है। 15 हजार नमूनों को जांच के लिए लखनऊ की प्रयोगशाला भेजा जाएगा। जांच रिपोर्ट आने के बाद यह सिद्ध होगा कि जिलास्तर पर जो जांच हुई हैं, वह ठीक है या नहीं।
पोषक तत्व पर एक नजर
मुख्य पोषक तत्व- अति न्यून स्तर- न्यून स्तर- मध्यम- उच्च स्तर
जीवांश कार्बन- 0.20 तक, 0.21 से 0.50, 0.51 से 0.80, 0.80 के ऊपर
फाॅस्फेट- 10.0 तक, 10.1 से 20, 20.1 40, 40 से ऊपर
पोटाश- 50 तक, 51 से 100, 101 से 205, 250 से ऊपर
नोट- जीवांश कार्बन प्रतिशत में और फाॅस्फेट और पोटाश प्रति हेक्टेयर किलो ग्राम में है।
उप कृषि निदेशक अरविंद मोहन मिश्रा ने बताया कि प्रतिबंध के बाद भी काफी किसान खेतों में फसल अवशेष को जला देते हैं। फसल अवशेष जलने वातावरण के साथ ही मिट्टी के पोषक तत्वों पर गहरा असर पड़ता है। सूक्ष्य जीव भी नष्ट हो जाते हैं। इतना ही नहीं, अधिकांश किसान फसलों में अत्यधिक व मानक विहीन रसायनिक खादों का इस्तेमाल करते हैं, जो ठीक नहीं है। किसानों को हमेशा संतुलित और जैविक खाद इस्तेमाल करना चाहिए। हरी खाद का इस्तेमाल सबसे बेहतर है।