नेता नहीं आंदोलन बनें चंद्रशेखर आजाद
वर्तमान ही नहीं भविष्य के भी बड़े नेता हो सकतें हैं चंद्रशेखर
आज भले ही उत्तरप्रदेश की राजनीति में अखिलेश यादव राहुलगांधी जयंत चौधरी सहित तमाम युवा नेता खुद को बड़ा और सफल नेता अथवा नेतृत्व मानकर चल रहे हों लेकिन मैं दावे साथ कह सकता हूं संघर्ष से निकले मास्टर के बेटे चन्द्रशेखर आज के दौर के सभी नेताओं को पछाड़कर न सिर्फ वर्तमान में बल्कि भविष्य के भी बड़े नेता माने जाने लगे हैं जिसमें इनके विरोधियों को भले हीनता के कारण शक हो लेकिन विश्लेषकों ने इस पर मोहर लगानी शुरू कर दी है। उत्पीड़न के अधिकांश मामलों में उनका पहुंचना भी उनकी लोकप्रियता का लोहा मानने को मजबूर करने लगा है
हालांकि इस समय जनमत के हिसाब से देखें तो उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव का बड़ा जनाधार माना जा रहा है लेकिन उनकी लोकप्रियता और व्यवहार कुशलता को भी नकारा नहीं जा सकता , इस सच्चाई से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि उन्हें सबकुछ विरासत में मिला है और उनके पिताजी श्री मुलायम सिंह यादव न सिर्फ जमीनी नेता रहे बल्कि उन्हें जनता ने ही नहीं देश के सभी बड़े नेताओं ने धरती पुत्र का खिताब देकर उत्तर प्रदेश का ही नहीं देश भर का सेकुलर नेता माना जिनके श्री अखिलेश यादव पुत्र है और सबसे ज्यादा काम करने वाले मुख्यमंत्री मानें जातें हैं लेकिन चन्द्रशेखर आजाद के संघर्ष के सामने अखिलेश की लोकप्रियता बहुत छोटी पड़ जाती है। यही हाल राहुल गांधी का है जिन्हें भारतीय जनता पार्टी ने कभी पप्पू तो कभी फेलियर नेता मानने में संकोच नहीं किया लेकिन देश के ढेर सारे लोगों ने उन्हें न सिर्फ पढ़ा-लिखा और शालीन नेता माना बल्कि उनकी योग्यता का लोहा मानकर चौबीस में हुए लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद मोदी सरकार की नाक में दम करने वाला योग्य नेता बना दिया, चंद्रशेखर आजाद द्वारा सिद्धांतवादी होने के कारण अपने अंदाज में ली गई लोकसभा की शपथ तथा पहले दिन ही गरीबों वंचितों यहां तक स्कूली रसोईयों के मानदेय की बात रख अध्यक्ष सहित पूरी लोकसभा को बता दिया मैं भले ही अकेले ने लोकसभा में पहुंचकर दरवाजा खोला है अब समाज की पीड़ा समझने वाले लोकसभा सदस्यों की लम्बी कतार लगने से कोई नहीं रोक सकता।
दूसरे नम्बर पर राहुल गांधी आते हैं जो वर्तमान में केंद्र सरकार की नाक में दम कर रहे हैं जिसे यदि भाजपा द्वारा की गई बदतमीजी का परिणाम भी कह दिया जाएं तो कोई बड़ी बात नहीं होगी खैर आज राहुल गांधी नरेंद्र मोदी सरकार के लिए सिरदर्द बनकर खड़े हो गए हैं जिसमें अखिलेश यादव के सहयोग को नकारा नहीं जा सकता लेकिन यह सब भी उनकी पुस्तैनी हैसियत की ओर ले जाता है मेरा मानना भी है कि राहुल गांधी उस परिवार में पैदा हुए जिस परिवार ने आजादी पाते ही देश की सरकार में कमान संभाली थी उसके बाद राहुल गांधी की दादी ,पिताजी और फिर उनकी मां देश में सरकार की सर्वे सर्वा रही ऐसे में राजघराने से निकले राहुल गांधी हो या प्रियंका का राजनिति के शिखर पर पहुंचना बड़ी बात नहीं है यही हाल जयंत चौधरी का है वह भी राजघराने से निकले उत्तर प्रदेश के राजनेता हैं जिनके दादाजी न सिर्फ देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री रहे फिर जयंत चौधरी के पिताश्री भी कई बार भारत सरकार में कद्दावर कैबिनेट मंत्री रहे , चाहे सरकार य़ूपीए की रही हो या एनडीए की उन्होंने सभी में अपनी पकड़ का लोहा मनवाया और जनता के नजदीक रहने में भी बड़ी उपाधी हासिल की, आज जयंती चौधरी भारत सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं लेकिन पहली उपलब्धि ही उन्हें विरासत में मिलने से इंकार नहीं किया जा सकता हालांकि मैं उन्हें व्यवहार कुशल व पिताजी के नक्शे कदम पर चलने वाला नेता मानता हूं लेकिन यह भी सोलह आने सही है कि सबकुछ उन्हें विरासत में मिला है ।
अब बात रही भीम आर्मी और आजाद समाज पार्टी के मुखिया चंद्रशेखर रावण की जिन्होंने न सिर्फ अनूसूचित जाति के गरीब घर में जन्म लिया बल्कि आर्थिक रूप से कमजोर शिक्षक जैसी नौकरी करने वाले पिताजी के घर में जन्म लेकर शिक्षा ग्रहण करके वकालत की डिग्री हासिल की और जब बात जातिगत उत्पीड़न की आई तो इस युवा ने लोकतांत्रिक व्यवस्था में सामंती रास्ता अपनाकर दलित उत्पीड़न करने वालों का जमकर सामना किया और बता दिया कि बेटा अब हम और हमारे लोग वह नहीं है जो कभी एक चांटा खाकर दूसरा आगे कर देते होंगे अब एक मारने से पहले ही चार खाने होंगे इस तरह यह युवा नेता भीम आर्मी नामक सामाजिक संगठन खड़ा कर नायक बनते बनते ऐसा संघर्षशील नेता बन गया जिसने कभी अपनी जान की परवाह नहीं की और आज देश भर वह किसी पहचान का मोहताज नहीं है पहली बार लड़े लोकसभा चुनाव में अपने और अपने समर्थकों और साफ निति व नियत अपनाकर जनपद बिजनौर की नगीना सुरक्षित लोकसभा से चुनाव मैदान उतरकर तमाम राजनीतिक दलों से धोखा खाने के बावजूद चंद्रशेखर आजाद ने अपनी ऐतिहासिक जीत दर्ज कराई जिस उपलब्धि को संघर्ष की मिसाल कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, खास बात यह रही अपने बल पर देशभर में मजबूत नेता बनकर उभरे चंद्रशेखर ने कभी बसपा मुखिया मायावती का अपमान तो क्या करते किसी दूसरे से भी उनके विरुद्ध एक बात भी सुनना पसंद नहीं किया ,
मैंश पथ पूर्वक कह सकता हूं कि यदि मैं बहन जी की तरह बसपा का मुखिया होता तो गरीबों वंचितों दलित पिछड़ों के लिए मसीहा बनकर आएं इस युवा सांसद को बसपा की कमान सौंप कर कहता कि बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर द्वारा कहें गए उस वायदे को सदा निभाते रहना जिसमें उन्होंने कहां था कि यदि आप लोग मेरे विजन को आगे न बढ़ा सको तो जहां मैं छोड़कर जा रहा हूं उसे वहीं बनाएं रखना ताकि भविष्य की पीढ़ियों को और अपमानित न होना पड़े। खैर यह तो बहन जी को सोचनी है कि वें हक और अधिकारों का हनन होती इस वर्तमान व्यवस्था को खत्म करना चाहती है या इसकी रक्षा कर नकारा लोगों की जगह चंद्रशेखर रूपी आंदोलन को खुशी खुशी सौंपकर बाबासाहेब व कांशीराम जी का सपना पूरा कर खुद कांशीराम जी के बाद की मसीहा बनना चाहतीं हैं वैसे भी चंद्रशेखर रुपी इस आंदोलन ने एक बड़ी आबादी के सुख दुख में साथ खड़े होकर न सिर्फ दलित और अतिपिछड़ों में अपनेपन का लोहा मनवाया है बल्कि मुस्लिमों में भी लोकप्रिय होने में सफलता पाई है इसलिए मेरा दावा है कि नगीना सांसद चन्द्रशेखर आजाद राजघराने से न आने के कारण वर्तमान के लोकप्रिय नेता तो बन ही गये है बल्कि भविष्य में देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने से इंकार नहीं किया जा सकता ,इसलिए कहना गलत नहीं होगा कि यदि वह वर्तमान राजनीति की तिकड़मबाजी से बचकर योजनबद्ध तरीके से दलितों अतिपिछड़ों और अल्पसंख्यकों में जनसंख्या अनुपात के हिसाब से शासन सत्ता में हिस्सेदारी देते रहे और अतिपिछड़ों को भी अनूसूचित जाति की तरह लोकसभा विधानसभा चुनाव में जनसंख्या अनुपात के आरक्षण देने सहित तमाम मूलभूत अधिकार देने के प्रति जागरूक रहें तो देश भर में सर्वोच्च नेता व नेतृत्व बन जाएंगे ऐसा मेरा विश्वास है । बस आवश्यकता है तो उन्हें योजनाबद्ध तरीके से घुसपैठ करने वाले आस्तीन के सांपों की जिन्होंने मान्यवर कांशीराम जी खड़े गए बसपा रूपी आंदोलन को समाप्त करके ही दम लिया लेकिन गनीमत यह रही कि बसपा रूपी आंदोलन समाप्त होने से पहले ही निडर निष्ठावान निष्पक्ष चंद्रशेखर रूपी आंदोलन ने जन्म लेकर तेजी से पतन की ओर जा रहे आंदोलन की कमान सम्भाल ली। जिसके केंद्र सरकार तक पहुंचने से इंकार नहीं किया जा सकता।
विनेश ठाकुर ,सम्पादक
विधान केसरी, लखनऊ