चिन्मय प्रभु की जमानत याचिका खारिज, कोर्ट ने जेल भेजने का दिया आदेश
बांग्लादेश की एक अदालत ने मंगलवार को हिंदू संगठन ‘सम्मिलित सनातनी जोत’ के नेता चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी की जमानत याचिका खारिज करते हुए उन्हें जेल भेजने का आदेश दिया। ‘बीडीन्यूज24 डॉट कॉम’ के अनुसार, ‘‘चट्टगांव के छठे मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट काजी शरीफुल इस्लाम की अदालत ने मंगलवार को करीब 11:45 बजे यह आदेश सुनाया।’’ समाचार पोर्टल ने बताया कि हिंदू पुजारी को जमानत नहीं मिलने पर उनके अनुयायियों ने अदालत परिसर में नारे लगाने शुरू कर दिए।
भारत के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर चिन्मय दास की गिरफ्तारी और जमानत ना दिए जाने पर गहरी चिंता जताई है और बांग्लादेश से सभी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने को कहा है। भारत सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि हमने चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी और जमानत से इनकार किए जाने पर गहरी चिंता व्यक्त की है। यह घटना बांग्लादेश में हिंसक तत्वों द्वारा हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर किए गए कई हमलों के बाद हुई है। अल्पसंख्यकों के घरों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में आगजनी और लूटपाट के साथ-साथ चोरी और तोड़फोड़ और देवताओं और मंदिरों को अपवित्र करने के कई मामले दर्ज हैं।”
विदेश मंत्रालय ने बयान में आगे कहा “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इन घटनाओं के अपराधी अभी भी खुलेआम घूम रहे हैं, जबकि शांतिपूर्ण सभाओं के माध्यम से वैध मांगें पेश करने वाले धार्मिक नेता के खिलाफ आरोप लगाए जा रहे हैं।” मंत्रालय ने धार्मिक नेता की गिरफ्तारी का विरोध कर रहे हिंदुओं पर हमलों के बारे में भी चिंता व्यक्त की।
बांग्लादेश पुलिस ने सोमवार को चिन्मय प्रभु को ढाका के हजरत शाहजलाल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से गिरफ्तार किया था। पुलिस की जासूसी शाखा के प्रवक्ता रिजाउल करीम ने कहा, ‘‘दास को (नियमित पुलिस) के अनुरोध के अनुसार हिरासत में लिया गया।’’ हालांकि, आरोपों का ब्योरा दिए बिना गिरफ्तारी की गई।
‘सनातनी जागरण जोत’ के प्रमुख संयोजक गौरांग दास ब्रह्मचारी के हवाले से ‘बीडीन्यूज24’ समाचार पोर्टल ने सोमवार को कहा कि दास को ढाका से हवाई मार्ग से चट्टगांव जाना था। इससे पहले, 30 अक्टूबर को चट्टगांव के कोतवाली पुलिस थाने में दास समेत 19 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था, जिसमें उन पर हिंदू समुदाय की एक रैली के दौरान चट्टगांव के न्यू मार्केट इलाके में बांग्लादेश के राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने का आरोप लगाया गया था।