बांग्लादेश से भारत आए शरणार्थियों को मिलेगी नागरिकता-सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने 1985 के असम अकॉर्ड और नागरिकता कानून की धारा 6A को सही करार दिया है. 5 जजों की बेंच ने 4:1 के बहुमत से यह फैसला दिया है. इसके चलते 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 तक ईस्ट पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से असम आए लोगों की नागरिकता बनी रहेगी, लेकिन उसके बाद आए लोग अवैध माने जाएंगे.
सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाओं के ज़रिए नागरिकता कानून, 1955 की धारा 6A को चुनौती दी गई थी. याचिकाकर्ताओं ने इसके जरिए तय की गई कट ऑफ तारीख को मनमाना बताया था. उन्होंने यह भी कहा था कि असम के लिए अलग से कानून बनाना संविधान के अनुच्छेद 14 यानी समानता के मौलिक अधिकार के खिलाफ है. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल दिसंबर में 4 दिन तक मामले की सुनवाई की थी.
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत, एमएम सुंदरेश, जेबी पारडीवाला और मनोज मिश्रा की बेंच ने गुरुवार (17 अक्टूबर 2024) को मामले पर फैसला दिया. इसमें से जस्टिस पारडीवाला का फैसला अल्पमत का रहा. उन्होंने नागरिकता कानून में 1985 में किए गए बदलाव को गलत कहा.
बेंच के बाकी 4 जजों ने माना है कि असम की अलग स्थिति को देखते हुए वहां के लिए अलग से व्यवस्था बनाना सही था. चीफ जस्टिस ने कहा, “आंकड़ों के मुताबिक असम में 40 लाख अवैध आप्रवासी हैं. पश्चिम बंगाल में 57 लाख हैं. फिर भी असम की कम आबादी को देखते हुए, वहां के लिए अलग से कट ऑफ डेट बनाना जरूरी था.”
कई याचिकाओं में ईस्ट पाकिस्तान से आए लोगों को नागरिकता देने का विरोध करते हुए कहा गया था कि असम की अलग सांस्कृतिक पहचान है. दूसरे देश से आए बांग्लाभाषी लोगों को वहां बसने देना गलत है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील पर असहमति जताई. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता यह साबित नहीं कर पाए हैं कि एक दूसरे समूह के असम में रहने से उनकी संस्कृति पर असर पड़ा है.
3 जजों की तरफ से फैसला पढ़ते हुए जस्टिस सूर्य कांत ने यह निष्कर्ष दिए :-
- 1 जनवरी 1966 से पहले असम में आने वाले अप्रवासी भारतीय नागरिक माने जाएंगे.
- जो अप्रवासी 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 तक असम आए, वह नागरिकता की मांग कर सकते हैं. अगर वह नागरिकता के लिए तय दूसरी पात्रताएं पूरी करते हैं, तो उन्हें नागरिकता देना सही है.
- जो अप्रवासी 25 मार्च 1971 के बाद असम आए, वे अवैध हैं. उनकी पहचान कर उन्हें हिरासत में लेना और उनके देश वापस भेजना चाहिए.