श्रावस्तीः सामाजिक और सांस्कृतिक तथा पारिवारिक विरासत है परिवार के बुजुर्ग लोग
विधान केसरी समाचार
श्रावस्ती। परिवार के बुजुर्ग एक सामाजिक, सांस्कृतिक तथा पारिवारिक विरासत है इन्हें संजोग कर रखना चाहिए जिस प्रकार वेद पुराण गीता रामायण आदि ग्रन्थ रखे जाते हैं। यदि नये लोग इसका सम्मान करते रहेंगे तो वृद्धजनों के अनुभवों को अपने भविष्य को उज्जवल बना सकेंगे अगर उन्होंने वृद्धजनों का पेशकार किया तो यह जीवन में विकास नहीं कर पायेंगे विकास का मात्र आर्थिक दृष्टिकोण से नहीं लेना चाहिए विकास को सर्वाेतोमुखी होना चाहिए किसी ने अपनी बुद्धि से लाखों करोड़ों रूपये अर्जित कर लिये हों लेकिन उसे संजोग कर रखने की सोच नही है उसके अन्दर अच्छे संस्कार नहीं है। वह अपनी इस संस्कृति की उपेक्षा करता है अधिक शिक्षा प्राप्त कर लेने से उसके लिए आवश्यक है कि उसकी शिक्षा सुसंस्कारित हो यदि माता-पिता सुसंस्कारित हैं तो सोचा जा सकता है कि संतान भी सुसंकारित होगी। इसी प्रकार संस्थाओं के पुराने अभिलेखों से पूर्व की बहुत कुछ जानकारी मिलती है वृद्धजनों से हम पूर्व का इतिहास रहन-सहन बनती बिगड़ी भौगोलिक स्थति पौराणिक बातें आदि की जानकारी मिलती है।
हमें संस्थाओं के विषय में सोचना होगा कि अमुख संस्था कब बनी कौन-कौन से पदाधिकारी रहे संस्थाओं की संचालित कैसे हुई नियमावली क्या होती है यह संस्था के लिए क्यों आवश्यक है आज कल के युवक जो पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से हैं रहन-सहन खान-पान वेष्य-भूसा आचरण व्यवहार अपना संस्कार एवं संस्कृति भूल चुके हैं उनके मां-बाप अपनी बेटों की दुव्र्यवहार से अपना जीवन यापन करने के लिए घर छोड़कर वृद्धआश्रम अथवा अनियत्र चले जाते हैं जैसा कि वृद्धाआश्रमों में जाकर देखा जा सकता है। जहां गरीब परिवार के वृद्धजन ही नहीं बल्कि उच्चपदो पर बैठे लोगों के मां-बाप इन वृद्धाश्रमों में अपनी जिन्दगी के शेष दिन काट रहे हैं। यह वृद्ध मां-बाप संस्थाओं के अभिलेख के समान है जिनसे पूर्व काल का ज्ञान मिल सकता है व्यक्ति का इतिहास परिवार का इतिहास ग्राम, नगर, जिला, प्रदेश और देश तथा विश्व का इतिहास बनता है। किसका चरित्र व्यवहार आचरण कैसा है पता चलता है।
पचास वर्ष पूर्व दीवाली कैसे मनायी जाती थी होली कैसे मनायी जाती थी और आज कैसे मनायी जा रही है उस समय इन पर्वाे की मनाने में क्या अच्छाइयां और क्या बुराइयां थी दोनो तुलनात्मक अध्ययन कर अच्छाईयों का अपनाया जा सकता है परन्तु जिसने यह मान लिया कि यह पुराने हो चुके है अब हमारे लिए बेकार है उन्हें जला देना चाहिए या कूड़े के ढेर में फेंक देना चाहिए वे लोग अपने जीवन में बहुत बड़ी भूल कर रहे हैं। क्योंकि कूड़े के ढेर में हीरे मिल जाते हैं लेकिन कोई उस ढेर में खोजना चाहे तभी यह सम्भव है। आज के नवयुवकों को मोबाइल में बहुत कुछ मिल सकता है परन्तु वृद्धजनों के अनुभवो को नहीं खोजा जा सकता बुद्धजीवियों और वृद्धजनों से ही अध्यात्म की बातें जानी जा सकती है।
रहमन मन तो चाहिए जैसा सूप सुभाये सार-सार- को गहि रहे थोथा दे उडाई। बच्चे जब मनमानी करने लगते और मां-बाप उन्हें सही रास्ते पर चलने को डांटते हैं तो संस्कारित बेटे अपने मां-बाप का कहते हैं कि यह बूढ़े हो गये इनकी बुद्धी ठीक नहीं है यह पागल हो गये इन्हें पागल खाने में छोड़ देना चाहिए। एक दांस्तान के रूप में एक परिवार की है जिस घर का पढ़ा लिखा बेटा इसी प्रकार की आचरण करता है जब उसके पिता उसके घर आते हैं तो कहता है कि भाग जाओ यह पागल हो गया है भद्दी-भद्दी गालियां बेटे से अपनी बाप का सुननी पड़ती है वही पिता जो गांव से गेहू, चावल, दाल राशन आदि लाकर बेटे के घर देता है वह बेटा अपने बाप का स्वागत गालियां से करता है।