हुर्रियत नेता मीरवाइज उमर फारूक को रिहा किया जाए-संजय टिक्कू

 

कश्मीरी पंडित नेता संजय टिक्कू ने जम्मू कश्मीर प्रशासन से घर में नज़रबंद हुर्रियत नेता मीरवाइज उमर फारूक की रिहाई की मांग की है ताकि वे जुम्मे के दिन श्रीनगर की जामिया मस्जिद से अल्पसंख्यकों की हत्या का विरोध जता सकें.

 

एबीपी न्यूज़ से खास बातचीत में संजय टिक्कू ने कहा, “मैं सरकार से अपील करता हूं कि कम से कम एक जुम्मे के लिए मीरवाइज को रिहा किया जाए ताकि वह न सिर्फ कश्मीरी पंडितों बल्कि यहां पर काम करने वाले हजारों अल्पसंख्यक प्रवासियों के लिए भी सुरक्षा की अपील कर सकें क्योंकि अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी बहुसंख्यकों की है.”

 

कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के नेता संजय टिक्कू ने मीरवाइज उमर फारूक से अपील की कि कल जुम्मे की नमाज के खुतबे में वह खुद से कश्मीर घाटी की सभी मस्जिदों के इमाम से कश्मीरी अल्पसंख्यकों की हत्या का विरोध करने की अपील करें.

 

संजय टिक्कू को 6 अक्टूबर को मक्खन लाल बिन्द्रू की हत्या के बाद उनके घर से सुरक्षित जगह पर शिफ्ट किया और उनकी जान को खतरा बताया था. खुद सुरक्षा कारणों से एक सुरक्षित स्थान पर सरकार की तरफ से स्थानांतरित किये जाने के बावजूद भी संजय टिक्कू का कहना है कि कश्मीर में बीते दो हफ्तों से बने हालात के लिए प्रशासन और सरकार ज़िम्मेदार है

कश्मीर नेता ने कहा, “5 अगस्त 2019 के बाद कश्मीर के हालात को सामान्य बनाने और यहां पर विभिन्न कार्यक्रम करके यह बताने की कोशिश की गयी कि सब कुछ ठीक है. लेकिन लगातार प्रशासन को खतरे के बारे में न सिर्फ सुरक्षा एजेंसियों को बल्कि उपराज्यपाल के दफ्तर तक को चिट्ठी लिखी. सरकार की नींद अब हमलो के बाद जागी है.”

 

संजय टिक्कू के अनुसार 1990 में पलायन के बाद भी करीब 820 परिवार कश्मीर में ही रहे. 1996 से 2021 के बीच 581 अल्पसंख्यकों की हत्या की गयी. लेकिन कभी भी उनको इतना डर नहीं लगा जितना आज लग रहा है. उन्होंने कहा कि लेकिन इस डर के बावजूद भी हम किसी भी हाल में पलायन नहीं करेंगे क्योंकि ऐसा कर हम उन शहीदों के खून से नाइंसाफी करेंगे जो पिछले 20 सालों में यहां मारे गए.

देशभर में अल्पसंख्यकों पर होने वाले हमलों और हिन्दू-मुस्लिम राजनीति के होने वाले प्रभाव को कश्मीरी पंडितों पर होने वाले हमलों जोड़ते हुए संजय टिक्कू ने कहा, “बाकी देश में हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर जो हिंसा की जा रही है, कश्मीरी पंडितों पर होने वाले हमले उसी का सीधा नतीजा हैं.” वहीं, उनके अनुसार किसी भी जगह को अल्पसंख्यकों के लिए सुरक्षित बनाने की ज़िम्मेदारी उस जगह के बहुसंख्यकों पर होती है और कश्मीर में यह ज़िम्मेदारी यहां के मुसलमानों को उठानी पड़ेगी. उन्होंने कहा, “अब ख़ामोशी से काम नहीं चल सकता और लोगों को विरोध जाताना होगा ताकि कश्मीर में पंडितों पर हमले रोके जा सकें. मुसलमानों को यह भी दिखाना होगा कि अगर अल्पसंख्यकों पर हमले नहीं रुके तो वह इन हमलों के विरोध में सड़कों पर आने के लिए तयार हैं.”

 

केंद्र सरकार पर कश्मीर और कश्मीरी लोगों की अनदेखी का आरोप लगाते हुए संजय टिक्कू ने कहा कि पिछले कई सालों से वह केंद्र सरकार से यहां रहने वाले कश्मीरी पंडितों के लिए कुछ मांग रहे थे लेकिन आज तक कुछ भी नहीं मिला. वे कहते हैं कि कश्मीरी पंडितों को कश्मीर में हिंदुस्तानी कहा जाता है और जब सरकार नहीं सुनती तो उनसे क्या उम्मीद की जा सकती है.