उन्नाव : दुर्गा कुशेहरी व जालीपा माता के मंदिर है आदिकालीन

 

विधान केसरी समाचार

 

उन्नाव/नवाबगंज। नवरात्र में माँ दुर्गा माँ कशहरी माँ जालिपा देवी के दर्शन की महिमा निराली है। हजारों की संख्या में भक्त इस शारदीय नवरात्रि में तीनो देवियों की पूजा पाठ दर्शन कर आशीर्वाद लेते हैं।पिछले दो सालों से कोविड गाइड लाइन के चलते मंदिरों में भक्तों का आना जाना काफी कम रहा।वही दर्शन करके सभी भक्तों का जीवन धन्य हो जाता है। सुबह से ही तीनों देवियों के दरबार में घँटे, घड़ियाल, शंख और मंजीरों की आवाज के साथ सारा वातावरण भक्तिमय हो जाता है।
नवाबगंज परिक्षेत्र के तीनों कोनों में बसे माँ के दरबार की महिमा निराली है। अति प्राचीन व पौराणिक मंदिर होने के नाते यह त्रिकोणीय आकार में बनती दिखाई देती है।

 

नवाबगंज स्थित माता दुर्गा की कथा-

 

इन पौराणिक मंदिरों के बारे में जानकार बताते हैं कि माँ दुर्गा मंदिर की स्थापना भगवान परशुराम ने की थी।जिसकी शुरुआत कस्बे से लगभग चार किमी की दूरी पर स्थित भितरेपार ग्राम के पास बनी एक झील के उस पार हुई थी। जहाँ पर एक ऊंचे टीले पर जगदगिन ऋषि का आश्रम है। जानकार बताते हैं कि यहीं पर परशुराम का जन्म हुआ था। वह बचपन से ही बड़े तेजस्वी व क्रोधी थे। इस झील के ऊंचे पर बैठकर वहां की सुन्दरता का अहसास किया जा सकता है। एक बार ऋषि जमदग्नि अपनी ही कुटिया पर बैठे पूजा पाठ कर रहे थे। ऋषिवर के पास एक कामधेनु गाय थी। जिसकी दूर दूर तक बड़ी चर्चा थी। एक बार राजा सहस्रबाहु उधर से गुजर रहे थे। रास्ते में ऋषि जमदग्नि की कुटिया पड़ी।जहाँ पर राजा ने अपनी पूरी सेना के साथ रूककर ऋषिवर से आशीर्वाद लिया। जिस पर ऋषिवर ने उन्हें जलपान आदि के लिए आग्रह किया। ऋषिवर ने अपनी कामधेनु गाय के निकलने वाले अमृत समान दूध से ही सारी सेना का पेट भर दिया। इसे देख राजा सहस्रबाहु आश्चर्य चकित हो गये। उन्होंने मन ही मन उस कामधेनु गाय को अपने साथ लेकर जाने का मन बना लिया।राजा ने ऋषि से गाय ले जाने की बात कही जिस पर ऋषि ने गाय को देने से मना कर दिया। जिससे राजा काफी आहत हुए और वहां से चले गये।इसी बीच परशुराम तपस्या के लिये निकल पड़े। कुटिया पर ऋषिवर अकेले ही रहते थे। तभी राजा सहस्रबाहु कुटिया पर आ गये और ऋषिवर से कामधेनु गाय मांगी। बदले में एक लाख गाय स्वर्ण जड़ित देने की बात कही,पर ऋषिवर तैयार नहीं हुए। जिस पर उन्होंने बलपूर्वक गाय को अपने कब्जे में ले लिया और जमदग्नि ऋषि का वध कर दिया। उधर परशुराम जब तपस्या करके अपनी कुटिया वापस आये तो उन्हें अपने पिता के मृत्यु का समाचार मिला।जिससे उनके क्रोध की सीमा नहीं रही।उन्होंने अपने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध व गाय वापस लाने की ठान ली। वह अपनी कुटिया से वापस आकर नगर में माँ दुर्गा की स्थापना कर पूजा पाठ की। माता ने प्रसन्न होकर विजय का आशीर्वाद दिया। जिसके पश्चात उन्होंने राजा सहस्रबाहु का वध कर और माता रूपी गाय को अपने साथ अपनी कुटिया ले आये,तभी से अष्ट भुजाओं वाली विजयदात्री माता दुर्गा को विजयी की देवी कहा जाने लगा।आज भी जब लोग किसी नए कार्य की शुरुआत करते हैं,तो माता के दर्शन जरूर करते है।

 

कुशेहरी माता की कथा-

 

नगर से मात्र 3 किलोमीटर की दूरी पर माँ कुशेहरी देवी का मंदिर है।इस मंदिर के स्थपना को लेकर पौराणिक मान्यता है कि सीता माता को लाने के लिए जब लव व कुश परियर जा रहे थे,तो यही विश्राम के लिए रूके थे। जहां पास में ही एक कुआ था।जब उनके सैनिक कुऐ से पानी निकालने लगे तो एक दिव्य शक्ति ने आभास कराया की कुए में कुछ है। जिस पर जब भगवान राम के पुत्र कुश ने कुए में जाकर देखा तो उन्हे माता की मूर्ति मिली। जिसे भगवान कुश ने उसे वही एक टीले पर स्थापित कर पूजा अर्चना की और अपने कुछ सैनिकों को वही एक गांव बसाने का आदेश दिया। तकि माता की पूजा अनवरत होती रहें। समूचे भारत में यही एक कुशेहरी देवी का मंदिर है। जिसमें आज भी मंदिर के पीछे कसौटी के पत्थर पर एक छत्रधारी घोड़े पर सवार लव कुश की मूर्ति भी बनी है।ऐसा पुरातत्व वेदता यहां आकर सिद्ध भी कर चुके है।माता कुशेहरी के मंदिर के ठीक सामने एक विशाल सरोवर भी बना है।मंदिर के बाहर आम नीम कंदब इमली पीपल के वृक्ष बड़ी संख्या में है। जिससे मंदिर प्रागण व आस पास का स्थल बड़ा ही मनोहारी दृश्य प्रस्तुत करता है। मान्यता है कि एक नर्तकी भुल्लन के शरीर को लकवा मार गया था। उसने कुशेहरी माता मंदिर में माता में ठीक करने की मन्नत मांगी थी।माता ने उसकी यह मुराद पूरी की। जिसके बाद उसने माता के मंदिर का जीर्णोद्वार कराया था।

 

जालीपा माता की कथा-

 

वही त्रिकोण में बसी मां जालिपा देवी की भी पूजन प्रथा एक जैसी है।वहां भी कन्याओं को नवरात्रों में कन्याभोज और भण्डारे का आयोजन भक्तगणों द्वारा किया जाता है। इन तीनो मंदिरो की पौराणिक मान्यता होने की वजह से यहां पर दोनो ही नवरात्रों में भक्तों की अपार भीड़ होती है। मंदिरों में आकर लोग मुण्डन उपनयन संस्कार भी करते है। माता कुशहरी देवी को कुछ भक्त अपनी कुल देवी के रूप में भी मान्यता देते है। भक्तो में आस्था है कि माता कुशहरी देवी भक्तों में उनके रोगो का समूल नाश करती वही नवाबगंज के माँ दुर्गा मंदिर के बारे में भक्तों का कहना है कि यहां मांगी गयी हर मन्नत मां पूरी करती है।

 

तीनो माता के मंदिर में आरती का समय-

 

कुशेहरी माता मंदिर में आरती के दिव्य दर्शन प्रातः व संध्या कालीन 7ः30 बजे का होता है। वही दुर्गा माता के दिव्य आरती दर्शन प्रातः व संध्या समय 8 बजे का है।इसके अलावा जालीपा माता मंदिर आरती दर्शन भी 6 बजे का है।
मंदिर के मुख्य पुजारी आँशु सिंह बताते है कि कोरोना काल में शोशल डिस्टनसिंग व ज्यादा भीड़ भीड़ न होने की वजह से मंदिर में आरती का समय निश्चित नही किया गया।वहीं मंदिर परिसर में मास्क पहनकर व सोशल डिस्टेंसिंग के साथ भक्तों को प्रवेश दिया जा रहा है।

 

कैसे पहुचे माता के मंदिर-

 

कुशेहरी माता मंदिर व दुर्गा माता के मंदिर जाने के लिए सड़क व रेल मार्ग दोनों से ही पहुच सकते है।रेल मार्ग से आने वाले भक्त कानपुर व लखनऊ स्टेशन से मेमो ट्रेन से कुशुम्भी स्टेशन उतरेंगे।जहा से टैक्सी से 1किमी की दुरी पर पश्चिम दिशा की ओर माता कुशेहरी मंदिर पहुचेंगे।वही दुर्गा माता के मंदिर पहुचने के लिए टैक्सी से नवाबगंज कस्बा पहुचेंगे।जहा से माता के मंदिर जा सकेंगे।सड़क मार्ग से आने के लिए लखनऊ के चारबाग बस स्टैंड से व कानपुर के झकरकटी बस स्टैंड से नवाबगंज बस स्टॉप उतरना पड़ेगा।वही जालीपा देवी मंदिर पहुचने के लिए भक्तों को नवाबगंज पुलिस चौकी के पास टैक्सी स्टैंड पहुँचकर कुइथर के परिगवा गांव जाना होगा।