ईकोटेरीयन’ ही जलवायु परिवर्तन रोक पाएँगे

 

विधान केसरी समाचार

 

आज का मानव स्वयं ही पर्यावरण के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गया है, जलवायु असंतुलन को रोकने के लिए हमें एक-दूसरे या सरकारों पर आरोप लगाने के बजाय अपने जीने के तरीक़ों में बदलाव लाना चाहिये। कोरोनावायरस संक्रमण के चलते हुए लाकडाउन से जीवन थम सा गया उद्योग, वाहन, रेल, वायुयान आदि काफ़ी समय तक बंद रहे जिसके फलस्वरूप दुनिया भर में कार्बन फुटप्रिंट अर्थात कार्बन उत्सर्जन कम हुआ। लाक्डाउन एवं कोविड का समय सम्पूर्ण मानवजाति के लिए एक सबक़ एवं प्रेरणा बनकर आया है जो हमें ललकार रहा है कि रुक जाओ वरना परिणाम अच्छे नही होंगे और साथ ही एक भरोसा एवं विश्वास भी दिला रहा है कि अब भी देर नही हुई है अब भी हम इस दुनिया को विनाश से बचा सकते हैं और अगर हम वैश्विक स्तर पर एक साथ मिलकर प्रयास करें तो ग्लोबल वॉर्मिंग रोककर पर्यावरण में संतुलन बना सकते हैं।

 

इसी शृंखला में हमने वैश्विक स्तर पर एक सामाजिक जागरूकता अभियान, शिक्षा प्रणाली एवं व्यवसाय या यूँ कहें जीवन शैली का आग़ाज़ किया है जो जलवायु परिवर्तन के बारे में चेतना फैलाकर, ग्लोबल वॉर्मिंग की रोकथाम के उपाय अपनाकर वातावरण के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है और हमारे इस प्रयास का नाम है ‘ईकोटेरीयन’। ईकोटेरीयन का मतलब एक ऐसा मानव है जो बिना पर्यावरण संतुलन बिगाड़े प्रकृति के नियमों के हिसाब से इस पृथ्वी पर जिये जो धरती के ईको सिस्टम का सम्मान करे। हम इस पृथ्वी पर एक ऐसे समुदाय का निर्माण करना चाहते हैं जो अपने हर कदम से पहले यह सोचे कि अगर मैं इस उत्पाद या जीवन शैली को अपनाता हूँ तो कार्बन का उत्सर्जन करने में अपना कितना योगदान दे रहा हूँ, कहीं मेरा कार्य पर्यावरण के संतुलन को ख़राब तो नही कर देगा यह सोच लेकर हम अपने उपक्रम में आगे बढ़े हैं। ‘ईकोटेरीयन’ एक बहुउद्देशीय संस्था है जिसमें एक ख़ास प्रकार की प्रार्थमिक शिक्षा प्रणाली पर कार्य किया जा रहा है, इस शिक्षा प्रणाली में पर्यावरण के प्रति मानव का व्यवहार पाठ्यक्रम का मुख्य हिस्सा है इसमें ऐसे बच्चे तैयार किए जाएँगे जिनमे पर्यावरण और जलवायु संतुलन उनके व्यक्तित्व का हिस्सा हो, इस शिक्षा प्रणाली का उद्देश्य एक ऐसी जागरूक एवं ज़िम्मेदार मानव जाति को तैयार करना है जो जलवायु परिवर्तन एवं पृथ्वी के वातावरण संतुलन को लेकर संवेदनशील हो, इसके अंतर्गत हम जगह-जगह ‘ईकोटेरीयन’ एकेडेमी की स्थापना कर इकोटेरियन एजुकेशन को सम्पूर्ण विश्व में फैलाएँगे।

 

इसका दूसरा हिस्सा है फ़ंड रेजिंग करके पर्यावरण में पौधे लगाना एवं उनकी देखभाल करना, जंगलों एवं वन्य जीवन का संरक्षण करना एवं प्राकृतिक उत्पाद बनाने वाले लोगों को अपने साथ जोड़कर उनके प्रशिक्षण, पुनर्वास एवं रोज़गार उपलब्ध कराने में मदद करना जो लोग पर्यावरण के लिये या पौधों के लिए डोनेट करना चाहते हैं वह इसका हिस्सा बन सकते हैं या इन उत्पादकों से इनका ज़ीरो वेस्ट और ज़ीरो हॉर्म वाले उत्पाद ख़रीद कर उन्हें अपनी जीवन शैली का हिस्सा बनाकर इन कारीगरों और छोटे उद्योगों के ज़िविकोपार्जन में इनकी मदद कर सकते हैं। इसके अलावा ‘ईकोटेरीयन’ एक ऑनलाइन शॉपिंग व्यवसाय है जिसमें आप अपने दैनिक जीवन में इस्तेमाल की जाने वाली पर्यावरण को नुक़सान पहुँचाने वाली वस्तुएँ प्राकृतिक एवं कम नुक़सान पहुँचाने वाली वस्तुओं/उत्पादों से बदल सकते हैं और अपने कार्बन उत्सर्जन को लगभग शून्य कर सम्पूर्ण विश्व के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन सकते हैं, अपने साथियों को भी ज़ीरो कार्बन फुटप्रिंट या ईकोटेरीयन जीवन शैली जीने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।

 

ग्लोबल वॉर्मिंग में कार्बन फुटप्रिंट एक मुख्य घटक है जिसका अर्थ किसी एक संस्था, व्यक्ति या उत्पाद द्वारा किया गया कुल कार्बन उत्सर्जन होता है। हमारे दैनिक जीवन के क्रियाकलापों, हमारी जीवन शैली एवं इस्तेमाल किए जाने उत्पादों से इसका उत्सर्जन होता है, यह उत्सर्जन कार्बन डाइऑक्साइड या ग्रीनहाउस गैसों के रूप में होता है इस का मतलब है कि वह सूर्य की गर्मी को रोक लेती है। आज धरती के तापमान को बढ़ाने में ’ग्रीन हाउस गैस’ ही मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। इसकी वजह से मौसम में बदलाव आए हैं – गर्मी के मौसम में गरमी बढ़ी है, बेमौसम बरसात होने लगी है, सूखे और बाढ़ का प्रकोप भी बढ़ा है, सर्दी के मौसम में ठंड बढ़ी है, ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं, बाढ़-भूकंप आ रहे हैं इन बदलावों का असर मनुष्य सहित पेड़ पौधों व पृथ्वी पर मौजूद सभी जीवों पर भी हो रहा है। कार्बन का उत्सर्जन विश्व के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है जिसे संतुलित करने के लिए यू॰एन॰, सभी देशों की सरकारें एवं हमारी नई पीढ़ी काफ़ी प्रयासरत है लेकिन वास्तविकता में नतीजे अपर्याप्त एवं निराशाजनक हैं, आधुनिक शहरीकरण व औद्योगीकरण में अनियंत्रित वृद्धि ने कई पर्यावरणीय समस्याओ को जटिल बना दिया है। औद्योगिक क्रांति से पहले मनुष्यों द्वारा पैदा किया गया जितना भी कार्बन डाई ऑक्साइड वातावरण में आता था, वह आसपास के जंगलों और पेड़ – पौधों द्वारा सोख लिया जाता था यही जंगल व पेड़ – पौधे कार्बन डाई ऑक्साइड को सोख कर ऑक्सीजन को वापस हवा में छोड़ देते थे लेकिन जंगलों का बेतहाशा कटान और हद से ज़्यादा कार्बन उत्सर्जन ने इस संतुलन को बिगाड़ दिया है, औद्योगिक युग की शुरुआत के साथ ही ईधन का प्रयोग बड़े पैमाने पर होने लगा जिससे कार्बन डाई ऑक्साइड भारी मात्रा में निकलने लगी, बढ़ती आबादी का पेट भरने के लिए खेती के लिए बड़े पैमाने पर जंगल काटे गए, जो कार्बन सोखने का काम करते थे। आज स्थिति यह है कि जितनी कार्बन डाई ऑक्साइड वातावरण में पैदा होती है, उसे सोखने के लिए पर्याप्त मात्रा में पेड़ ही नहीं बचे हैं।

 

 

मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन या ग्लोबल वार्मिंग वायुमंडल में कुछ प्रकार के गैसों की उत्सर्जन की वजह से होता है जो ना केवल पर्यावरण पर अपितु मनुष्य के ज़ीवन पर भी प्रभाव डाल रहे हैं इसलिए कार्बन पदचिह्न आज के युग के लिए बहुत ही प्रासंगिक हो गए है। हमें गैसीय उत्सर्जन की समझ को विकसित करने की कोशिश करनी चाहिये तभी हम पृथ्वी पर संतुलन की स्थिति बना पाएँगे, हमारी सभी आदतें, जिनमें खानपान से लेकर पहने जाने वाले कपड़े तक शामिल हैं, कार्बन फुटप्रिंट कारण बनते हैं। इसे हम इस प्रकार से समझ सकते हैं, हर काम के लिए हमें ऊर्जा की जरूरत पड़ती है और इससे ब्व्2 गैस निकलती है, जो धरती को गर्म करने वाली सबसे अहम गैस है। हम दिन, महीने या साल में जितनी कार्बन डाइआक्साइड पैदा करते हैं, वह हमारा कार्बन पदचिह्न है इसे कम-से-कम रख कर ही पृथ्वी को जलवायु परिवर्तन के प्रकोप से बचाया जा सकता है।

 

 

क्योटो प्रोटोकॉल के अनुसार कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, हाइड्रोफ्लोरोकार्बन, पर्फ्लोरोकार्बन, सल्फर हेक्साफ्लोराइड उत्सर्जन कार्बन पदचिह्न में गिना जाता है प्रत्येक व्यक्ति का कार्बन फुटप्रिंट उनके स्थान, आदतों और व्यक्तिगत पसंद के आधार पर अलग होता है। हम में से प्रत्येक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में योगदान देता है, जिस तरह से हम यात्रा करते हैं, खाना खाते हैं, बिजली की मात्रा और हम और भी बहुत कुछ करते हैं। उदाहरण के लिए जब हम कार चलाते हैं और ईंधन जलाते हैं तो यह वातावरण में कुछ मात्रा में ब्व्2 उत्पन्न करता है। जब आप अपने घर को गर्म करते हैं तो यह भी ब्व्2 उत्पन्न करता है और इसी तरह जब आप खाना खाते हैं तो भी यह कुछ मात्रा में ब्व्2 उत्पन्न करता है। इंसान के पास अपने कार्बन फुटप्रिंट कम करने के कई तरीके हैं। एक तरीका तो यह है कि आपके द्वारा कम से कम कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण में बढ़े। इसका मतलब है कि आप सोच समझ कर चीजों का इस्तेमाल करें, रीसाइकिलिंग करें, सार्वजनिक यातायात का इस्तेमाल करें जहां तक हो सके ज्यादा से ज्यादा पैदल चलें, स्थानीय और रिसाइकिल्ड उत्पादों का प्रयोग करें, मीट की जगह स्थानीय चीजों का सेवन करें।

कार्बन डाइऑक्साइड को कम करने का दूसरा तरीका इसको सोखना है। वृक्षारोपण इसका सबसे आसान और प्रभावशाली तरीका है। एक पेड़ अपने जीवन काल में एक टन कार्बन डाइऑक्साइड को कार्बन और ऑक्सीजन में बदलता है।

 

आप ’कार्बन-न्यूट्रल’ बन सकते हैं, इसका मतलब है कि आप अपने कार्बन फुटप्रिंट को पूरी तरह से मिटाने के लिए उतने पेड़ लगाइए, और उनकी देखभाल कीजिए, जो आप द्वारा उत्सर्जित होने वाले पूरे कार्बन डाइऑक्साइड को सोख ले कार्बन पदचिह्न को कम करने के लिए सौर, पवन ऊर्जा के अधिक इस्तेमाल और पौधारोपण आदि से कार्बन उत्सर्जन में कमी लाई जा सकती है इसलिए पौधों को बचायें। फ्लोरेसेंट बल्बों के इस्तेमाल से कार्बन पदचिह्न को कम कर सकते हैं साथ ही हम प्लास्टिक के उपयोग को ना कहें हमेशा सार्वजनिक परिवहन एवं कार-पूल का उपयोग करें। हम अपने दैनिक जीवन में ऐसे उत्पादों का इस्तेमाल करें जिनका पर्यावरण पर दुष्प्रभाव ना हो, जिन्हें आसानी से रिसाईकल किया जा सके, जो आसानी से इस धरती में समा सके। हम पुनर्नवीनीकरण उत्पादों और ऐसे उत्पादों का इस्तेमाल कर सकते हैं जिनको पुनर्नवीनीकरण किया जा सके, सामुदायिक स्तर पर ग्रीन हाउस गैसों को कम करने वाली जीवन शैली को प्रोत्साहित कर हम अपने कार्बन उत्सर्जन को कम कर सकते हैं इसके अलावा कार्बन उत्सर्जन पर टैक्स निर्धारित करके उत्सर्जन को कम किया जा सकता है इस टैक्स के कारण बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करने वाले संगठन एवं कंपनियों की संख्या कम हो सकती है जो पर्यावरण में प्रदूषण के स्तर को कम करने के साथ-साथ ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को कम करने में मददगार साबित हो सकता है और टैक्स से बचने के लिए लोग प्रदूषण की रोकथाम के प्रयास ज़रूर करेंगे।

 

ईकोटेरीयन अपने कार्बन उत्सर्जन पर नियंत्रण करके अपने कार्बन फुटप्रिंट को लगभग न्यूट्रल कर रहे हैं, आप भी ईकोटेरीयन बन सकते हैं अपनी ख़ुशी से नही तो मजबूरी में आपको बनना पड़ेगा, कभी-कभी हमें खुद से कुछ सवाल पूछने चाहिएँ तो अपने समाधान हम स्वयं पा लेंगे, कभी सोचा है कि सुबह से शाम तक जो हम कूड़े का ढेर खड़ा करके अपने घर से बाहर फेंक देते हैं उस कूड़े से हम कैसे निजात पाएँगे, उस कूड़े को अगर अभी से नियंत्रित नही किया तो कूड़े के कितने पहाड़ होंगे हमारे आस पास? कभी सोचा है कि हम अपने कूड़े को किस तरह घटा सकते हैं?

 

हम अंधाधुंध सामान इकट्ठा कर रहे हैं नए सामान लेते हैं ज़ाहिर है हर कोई अपनी पसंद की चीजें इकट्ठा करना चाहता है और पुरानी चीजें फेंक देते हैं कभी सोचा है ये सब सामान आख़रि कैसे डिस्पोस होगा कैसे पीछा छूटेगा इतने सामान से कहाँ फेंकोगे?

 

अगर हम अपने दैनिक जीवन में थोड़ी सावधानियाँ बरतते हैं, हम कम केमिकल वाले साबुन इस्तेमाल करते हैं, प्राकृतिक टूथपेस्ट एवं टूथब्रश इस्तेमाल करते हैं, कूड़ा नही फैलाते हैं, ऐसी चीजें इस्तेमाल करते हैं जो वापिस धरती में आसानी से मिल जाएँ, चीजों को रिसाइकल करते हैं, प्रदूषण रोकते हैं , बिजली बचाते हैं, पैदल चलते हैं, पानी के बचाव पर ध्यान केंद्रित करते हैं, प्लास्टिक का इस्तेमाल नही कर रहे हैं, मीट के बजाय लोकल फ़ूड खा रहे हैं, साइकल चलाते हैं तो हम सभी ईकोटेरीयन हैं एवं सही मायनों में इस धरती के रक्षक हैं। पृथ्वी के वातावरण एवं जलवायु संरक्षण की ज़िम्मेदारी हम में से प्रत्येक की है, वर्तमान प्रयास, वर्तमान शिक्षा प्रणाली एवं वर्तमान जीवन शैली कारगर नही है हमें इस धरती पर पैदा होने वाले हर बच्चे को प्रोग्राम करना पड़ेगा, पर्यावरण को उसके दृष्टिकोण का हिस्सा बनाना होगा, सोचकर आपको अजीब लगेगा लेकिन एक सच आपकी आँख खोल सकता है, क्या आप जानते है जलवायु परिवर्तन रोकने का एकमात्र प्रभावी उपाय क्या है? वैज्ञानिकों का कहना है कि बच्चों के जन्म को ही रोक दिया जाये ना कोई दुनिया में आएगा और ना ही अपने क्रियाकलापों से कार्बन का उत्सर्जन करेगा और ना ही जलवायु असंतुलन होगा पर यह तो बिल्कुल भी सम्भव नही तो जो सम्भव है क्यों ना उस पर काम करें? अपने बच्चों को पर्यावरण के साथ तालमेल बिठाना सिखायें, उसके अंदर प्रकृति के लिए संवेदना जगायें उसे समझाए की जितना महत्वपूर्ण साँस लेना, खाना-पीना है उतना ही ज़रूरी धरती के नियमों को मानना भी है। प्रकृति सर्वोपरि है इससे पंगा लेना मतलब तबाही को बुलावा देना है। इस धरती पर हमें इसके ईकोलोजिकल सिस्टम के हिसाब से ही रहना होगा हमारे पास कोई विकल्प नही है और समय तो बिल्कुल भी नही है, यह जलवायु आपातकाल की स्थिति है और ईकोटेरीयन बनकर जलवायु परिवर्तन के निदान के लिए संगठित होकर प्रयास करना हमारा प्रथम कर्तव्य है।

 

 

“कुदरत के पास वापिस लौटना मानव की मजबूरी है वरना वह इस पृथ्वी पर समाप्ति की और है”

 

                     आभा चौधरी
समाजसेवी, पर्यावरण आंदोलनकर्ता एवं व्यवसायी
    एम॰डी॰ आराध्यम इंफ़्राबिल्डर्ज़ प्रा. लि.
          संस्थापक ‘ईकोटेरीयन’