अब हम एनडीए के सहयोगी दल हैं-संजय निषाद
उत्तर प्रदेश सरकार में अपने लिए उप मुख्यमंत्री पद की मांग करने वाले निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल के अध्यक्ष डॉक्टर संजय निषाद को विधान परिषद का सदस्य मनोनीत किये जाने के बाद सोमवार को पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी का धन्यवाद किया और उम्मीद जताई कि उसे प्रदेश विधानसभा चुनाव में सम्मानजनक सीटें मिलेंगी. निषाद, विधान परिषद सदस्य के तौर पर नामित किये जाने के फैसले से संतुष्ट दिखे.
संजय निषाद ने सोमवार को कहा, “मुझे खुशी है कि मुझे उच्च सदन के लिए मनोनीत किया गया. यह बड़ी बात है क्योंकि पिछली सरकारों में जिन मुद्दों को नहीं सुना गया, उन्हें बीजेपी सरकार उठा रही है.” रविवार को राज्य सरकार ने विधान परिषद में मनोनीत करने के लिए संजय निषाद के साथ जितिन प्रसाद और दो अन्य के नाम का प्रस्ताव राज्यपाल को भेजा. उप मुख्यमंत्री पद की उनकी मांग के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, “बीजेपी ने ‘चायवाले’ को देश का प्रधानमंत्री बनाया है. उसने मेरे द्वारा निषाद समुदाय को जगाने के लिए किए गए कार्यों को मान्यता दी है. पहले हम सड़कों पर लड़ते थे और जनहित के मुद्दे उठाते थे लेकिन अब मैं इसे सदन में उठाऊंगा.”
निषाद ने जुलाई में कहा था कि उनका समुदाय उन्हें उपमुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहता है और उन्होंने बीजेपी पर निषाद समुदाय को आरक्षण देने के अपने वादे को पूरा नहीं करने का आरोप लगाया था. आरक्षण की मांग के बारे में पूछे जाने पर निषाद ने कहा, “यह देखा जा रहा है. आप एक सरकारी प्रवक्ता से प्रतिक्रिया प्राप्त कर सकते हैं.” बीजेपी ने पिछले हफ्ते औपचारिक रूप से घोषणा की थी कि वह निषाद पार्टी के साथ गठबंधन में 2022 विधानसभा चुनाव लड़ेगी. हालांकि सीट बंटवारे का खुलासा नहीं किया गया.
2017 में बीजेपी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा की 403 में से 20 सीटें अपने दो सहयोगियों- अपना दल (एस) और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा)- के लिए छोड़ी थी. बाद में सुभासपा ने बीजेपी से गठबंधन तोड़ लिया. राज्य विधानसभा चुनाव में निषाद पार्टी ने डॉक्टर अयूब के नेतृत्व वाली पीस पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और तब निषाद पार्टी ने 72 सीटों पर चुनाव लड़ा जिसमें भदोही जिले के ज्ञानपुर में पार्टी उम्मीदवार विजय मिश्रा को जीत मिली और निषाद को बाकी सीटों पर 3.58 प्रतिशत मत मिले थे जहां उसने उम्मीदवार उतारे थे.
पीस पार्टी ने 68 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसे 1.56 प्रतिशत मत मिले. राजनीतिक दल बनने के बाद पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में जातीय आधार पर अपना प्रभाव रखने वाली निषाद पार्टी का चुनाव मैदान में आने का वह पहला तर्जुबा था. आगामी विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी को मिलने वाली सीटों के बारे में पूछे जाने पर, निषाद ने कहा, “यह सम्मानजनक होगा. यह ऐसा होगा जिससे हमें खुशी होगी.”
निषाद ने कहा, “अब हम एनडीए के सहयोगी दल हैं और इसकी जीत सुनिश्चित करेंगे और हमारी कोशिश होगी कि लक्ष्य से भी ज्यादा सीटें हमें मिलें.” ओबीसी समुदाय से आने वाला मछुआरा समाज निषाद की जुड़ी उपजातियों मल्लाह, केवट, धीवर, बिंद, कश्यप और अन्य के साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिलों में गैर-यादव पिछड़े वोट का एक महत्वपूर्ण समूह है. निषाद पार्टी 2017 के चुनावों से पहले राज्य में राजनीतिक परिदृश्य में अनुसूचित जाति सूची में शामिल करने की मांग के साथ उभरी और इस मांग के साथ खुद को नाविक जातियों की आवाज के रूप में पेश किया.
प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे से रिक्त हुई गोरखपुर संसदीय सीट पर 2018 में हुए उपचुनाव में संजय निषाद ने समाजवादी पार्टी के साथ तालमेल किया और सपा ने उनके बेटे प्रवीण निषाद को गोरखपुर से उम्मीदवार बनाया. यह उपचुनाव प्रवीण जीत गये, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में संजय निषाद ने सपा से नाता तोड़कर बीजेपी से गठजोड़ कर लिया. प्रवीण निषाद को इस बार बीजेपी ने संत कबीर नगर से उम्मीदवार बनाया और वह चुनाव जीतकर दोबारा लोकसभा में पहुंच गये. उधर, बीजेपी आम चुनाव में गोरखपुर सीट भी जीत गई.